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२, १, ३३.]
सामित्ताणुगमे जोगमग्णणा वा तिणि वा जोगा जुगवं किण्ण होति ? ण, तेसिं णिसिद्धाकमवुत्तीदो । तेसिमक्कमेण वुत्ती वुवलंभदे चे? ण, इंदियविसयमइक्कंतजीवपदेसपरिप्फंदस्स इंदिएहि उवलंभविरोहादो। ण जीवे चलंते जीवपदेसाणं संकोच-विकोचणियमो, सिझंतपढमसमए एत्तो लोअग्गं गच्छंतम्मि जीवपदेसाणं संकोच-विकोचाणुवलंभा ।।
कधं मणजोगो खओवसमियो ? वुच्चदे। वीरियंतराइयस्स सव्वघादिफयाणं संतोवसमेण देसघादिफयाणमुदएण णोइंदियावरणस्स सव्यधादिफयाणमुदयक्खएण तेसिं चेव संतोवसमेण देसघादिफद्दयाणमुदएण मणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स जेण मणजोगो समुप्पज्जदि तेणेसो' खओवसमिओ। वीरियंतराइयस्स सव्वधादिफयाणं संतोवसमेण देसघादिफद्दयाणमुदएण जिभिदियावरणस्स सयघादिफद्दयाणमुदयक्खएण तेसिं चेव संतोवसमेण देसघादिफयाणमुदएण भासापज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स सरणाम
शंका-दो या तीन योग एक साथ क्यों नहीं होते ?
समाधान नहीं होते, क्योंकि, उनकी एक साथ वृत्तिका निषेध किया गया है।
शंका- अनेक योगोंकी एक साथ वृत्ति पायी तो जाती है ?
समाधान नहीं पायी जाती, क्योंकि इन्द्रियों के विषयसे परे जो जीवप्रदेशोंका परिस्पन्द होता है उसका इन्द्रियों द्वारा ज्ञान मान लेने में विरोध आता है। जीवोंके चलते समय जीवप्रदेशोंके संकोच-विकोचका नियम नहीं है, क्योंकि, सिद्ध होनेके प्रथम समयमें जब जीव यहांसे, अर्थात् मध्यलोकसे, लोकके अग्रभागको जाता है तब उसके जीवप्रदेशोंमें संकोच-विकोच नहीं पाया जाता।
शंका-मनोयोग क्षायोपशमिक कैसे है ?
समाधान बतलाते हैं । चूंकि वीर्यान्तरायकर्मके सर्वघाति स्पर्धकोंके सत्त्वोपशमसे व देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे; नोइन्द्रियावरण कर्मके सर्वघाति स्पर्धकोंके उदयक्षयसे व उन्हीं स्पर्धकोंके सत्त्योपशमसे तथा देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे मनपर्यापित पूरी करलेनेवाले जीवके मनोयोग उत्पन्न होता है, इसलिये उसे क्षायोपशमिक भाव कहते हैं।
उसी प्रकार, वीर्यान्तरायकर्मके सर्वघाती स्पर्धकोंके सत्योपशमसे व देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे; जिह्वेन्द्रियावरण कर्मके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयक्षयसे व उन्हींके सत्वोपशमसे तथा देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे भाषापर्याप्ति पूर्ण करलेनेवाले स्वर
१ कप्रतौ ' तेण सो' इति पाठः।
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