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छक्खडागमे खुदाबंधी
[ २, १, ३३. होंति तो खीणंतराइयम्मि सिद्धे जोगबहुतं पसज्जदे ? ण, खओवसमियबलादो खइयस्स बलस्स पुधत्तदंसणादो | ण चं खओवसमियबलवड्डि-हाणीहिंतो वड्डि-हाणीणं गच्छमाणो जीवपदेस परिष्कंदो खइयबलादो वड्डि-हाणीणं गच्छदि, अइप्पसंगादो । जदि जोगो वीरियं तराइय खओवसमजणिदो तो सजोगिम्हि जोगाभावो पसज्जदे ? ण, उवयारेण खओवस मियं भावं पत्तस्स ओदइयस्स जोगस्स तत्था भावविरोहादो ।
सोच जोगो त्तिविहो मणजोगो वचिजोगो कायजोगो ति । मणवग्गणादो णिष्फण्णदव्वमणमवलंबिय' जो जीवस्स संकोच - त्रिकोचो सो मणजोगो । भासावग्गणापोग्गलखंधे अवलंबिय जो जीवपदेसाणं संकोच - विकोचो सो वचिजोगो णाम । जो उहि सरीराणि अवलंबिय जीवपदेसाणं संकोच -विकोचो सो कायजोगो णाम । दो
जीवप्रदेशों के परिस्पन्दकी वृद्धि और हानि होती है, तब तो जिसके अन्तराय कर्म क्षीण हो गया है ऐसे सिद्ध जीव में योगकी बहुलताका प्रसंग आता है ?
समाधान — नहीं आता, क्योंकि क्षायोपशमिक बलसे क्षायिक बल भिन्न देखा जाता है । क्षायोपशमिक बलकी वृद्धि-हानिसे वृद्धि हानिको प्राप्त होनेवाला जीवप्रदेशोंका परिस्पन्द क्षायिक वलसे वृद्धि-हानिको प्राप्त नहीं होता, क्योंकि, ऐसा मानने से तो अतिप्रसंग दोष आजायगा ।
शंका- यदि योग वीर्यान्तराय कर्मके क्षयोपशम से उत्पन्न होता है, तो सयोगिकेवलमें योग अभावका प्रसंग आता है ?
समाधान - नंदीं आता, क्योंकि योग में क्षायोपशमिक भाव तो उपचारसे माना गया है । असल में तो योग औदयिक भाव ही है, और औदयिक योगका सयोगिकेवली में अभाव मानने में विरोध आता है ।
वह योग तीन प्रकारका है - मनोयोग, वचनयोग, और काययोग | मनोवर्गणा से निष्पन्न हुए द्रव्यमनके अवलम्बनसे जो जीवका संकोच -विकोच होता है वह मनोयोग है । भाषावर्गणासम्बन्धी पुद्गलस्कंधोंके अवलम्बनसे जो जीवप्रदेशोंका संकोच - विकोच होता है वह वचनयोग है । जो चतुर्विध शरीरोंके अवलम्बसे जीवप्रदेशोंका संकोच विकोच होता है वह काययोग है ।
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१ प्रतिषु - दव्वमणवलंबिय' इति पाठः ।
२ प्रतिषु ' चन्त्रिहो ' इति पाठः ।
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