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________________ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ९-९, २०७. एत्थ ' छट्ठीए पुढवीए णेरइया उबट्टिदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति' त्ति वत्तव्यं, ण 'णिरयादो णेरइया' त्ति, तस्स फलाभावा ? ण एस दोसो, छट्ठीए पुढवीए गेरइया णिरयादो णिरयपज्जायादो उव्यट्टिदसमाणा विणट्ठा संता णेरइया दव्यट्ठियणयावलंबणेण गैरइया होदूण कदि गदीओ आगच्छंति त्ति तदुच्चारणाए फलोवलंभा । सेसं सुगम। दुवे गदीयो आगच्छंति तिरिक्खगदि मणुसगदिं चेव ॥२०७॥ (एदं पि सिस्ससंभालणटुं परूविदं । तिरिक्ख-मणुस्सेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा मणुसा केइं छ उप्पाएंति- केइं आभिणिबोहियणाणमुप्पाएंति, केइं सुदणाणमुप्पाएंति, केइमोहिणाणमुप्पाएंति, केइं सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति, केहं सम्मत्तमुप्पाएंति, केइं संजमासंजममुप्पाएंति ॥ २०८ ॥ -......................................... शंका-यहां 'छठवीं पृथिवीसे निकलकर नारकी कितनी गतियोंमें आते हैं। ऐसा सूत्र कहना चाहिये, 'नरकसे नारकी होते हुए' यह कहने की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि इन पदोंका कोई फल नहीं है ? समाधान- यह कोई दोष नहीं, क्योंकि 'छठवीं, पृथिवीके नारकी, नरकसे अर्थात् नरकपर्यायसे, निकलकर अर्थात् विनष्ट होकर, नारकी अर्थात् द्रव्यार्थिक नयके अवलम्बनसे नारकी होते हुए कितनी गतियों में आते हैं' ऐसा सूत्रोक्त उन पदोंके उच्चारणका फल पाया जाता है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। छठवीं पृथिवीसे निकलनेवाले नारकी जीव दो गतियों में आते हैं- तियंचगति और मनुष्यगति ॥ २०७॥ यह सूत्र भी (पुनरुक्त होते हुए भी) शिष्यों को स्मरण करानेके अर्थ प्ररूपित किया गया है। तिर्यंच और मनुष्योंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच व मनुष्य कोई छह उत्पन्न करते हैं- कोई आभिनिबोधिक ज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञान उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्व उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यक्त्व उत्पन्न करते हैं, और कोई संयमासंयम उत्पन्न करते हैं ॥ २०८ ॥ १ बनती दुोहि इति पाठः । २ षष्ट्या उद्घतिता नारवालिवमनप्या जाताः केचिन्म लिवनावषिसम्यक्त्रसम्यन्मिथ्यात्वसंयमासंयनात् षडुत्पादयन्ति, न सर्वे, नान्यतोन्यत् । त. रा. ३. ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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