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________________ ४१४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१,९-८, १६. अंतोमुहुत्तद्विदि ठवेदि संखेज्जगुणमाउआदो' । एदेसु चदुसु समएसु अप्पसत्थकम्मंसाणमणुभागस्स अणुसमयओवट्टणा, एगसमइयो द्विदिखंडयस्स घादों । एत्तो सेसियाए द्विदीए संखेज्जे भागे हणदि । सेसस्स च अणुभागस्स अणते भागे हणदि । एत्तो पाए द्विदिखंडयस्स अणुभागखंडयस्स च अंतोमुहुत्तिया उक्कीरणद्धा ।। एतो अंतोमुहुत्तं गंतूण बादरकायजोगेण बादरमणजोग णिरंभदि । तदो अंतोमुहुत्तेण बादरकायजोगेण बादरवचिजोगं णिरंभदि । तदो अंतोमुहुत्तेण बादरकायजोगेण बादरउस्सासणिस्सासं णिरंभदि । तदो अंतोमुहुत्तेण बादरकायजोगेण तमेव बादरकायजोगं णिरंभदि । तदो अंतोमुहुतं गंतूण सुहुमकायजोगेण सुहुममणजोग णिरुभदि । तदो अंतोमुहत्तं गंतूण सुहुमवचिजोगं णिरंभदि । तदो अंतोमुहुत्तं गंतूग सुहुमकायजोगेण लोकपूरणसमुद्घातमें आयुसे संख्यातगुणी अन्तर्मुहूर्तमान स्थितिको स्थापित करता है। इन चार समयोंमें अप्रशस्त कर्मोंके अनुभागकी प्रतिसमय अपवर्तना होती है। एक एक समयमें एक एक स्थितिकांडकका घात होता है । उतरने के प्रथम समयसे लेकर शेष स्थितिके संख्यात बहुभागको, तथा शेष अनुभागके अनन्त बहुभागको भी नष्ट करता है। लोकपूरणसमुद्घातके अनन्तर समयसे लेकर स्थितिकांडक और अनुभागकांडकका अन्तर्मुहूर्तमात्र उत्कीरणकाल प्रवर्तमान रहता है। यहांसे अन्तर्मुहूर्त जाकर बादर काययोगसे बादर मनोयोगका निरोध करता है। तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्तसे बादर वचनयोगका निरोध करता है। पुनः अन्तर्मुहूर्तसे बादर काययोगसे बादर उच्छ्वास निच्छ्वासका निरोध करता है। पुनः अन्तर्मुहूर्त से बादर काययोगले उसी बादर काययोगका निरोध करता है। तत्पश्चात् अन्तर्मुहूर्त जाकर सूक्ष्म काययोगसे सूक्ष्म मनोयोगका निरोध करता है। पुनः अन्तर्मुहूर्त जाकर सूक्ष्म वचनयोगका निरोध करता है । पुनः अन्तर्मुहूर्त जाकर सूक्ष्म काययोगसे सूक्ष्म ........................................... १ जगपूरणम्हि एक्का जोगस्स य वग्गणा ठिदी तस्स । अंतोमुहुत्तमेत्ता संखगुणा आउआ होदि ॥ लब्धि. ६२६. २ चउसमएम रसस्स य अणुसमओवट्टणा असत्थाणं । ठिदिखंडस्सिगिसमयिगघादो अंतोमहत्त्वरिं॥ लब्धि. ६२५. ३ योगनिरोधं कुर्वन् प्रथमतो बादरकाययोगबलादन्तर्मुहूत्तमात्रेण बादरवाग्योगं निरुणद्धि, तन्निरोधानंतरं चान्तर्मुहूर्त स्थित्वा बादरकाययोगोपष्टम्भादेव बादरमनोयोगमन्तर्मुहूर्तमात्रेण निरुणद्धि | xxx बादरमनोयोगनिरोधानन्तरं च पुनरप्यन्तर्मुहूत्त स्थित्वा तत उच्छ्वासनिःश्वासावन्तर्मुहूर्त्तमात्रेण निरुणाद्ध । ततः पुनरप्यन्तर्मुहूर्त स्थित्वा सूक्ष्मकाययोगबलाद्वादरकाययोगं निरुणद्धि, बादरयोगे सति सूक्ष्मयोगस्य निरोद्धमशक्यत्वात् । xxx कचिदाहुः- बादरकायबलाद्वादरकाययोग निरुणद्धि । युक्तिं चात्र वदन्ति- यथा कारपत्रिकः स्तम्भोपरिस्थितस्तमेव स्तम्भ छिनत्ति, तथा बादरकाययोगोपष्टम्भाद् बादरकाययोगं निहतीति, तदत्र तत्वमतिशायिनो विदन्ति । पंचसंग्रह १, पृ. ३०-३१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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