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१, ९-८, १६.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए किट्टीवेदणं
। ४०३ रत्तस्स अंतो, णामा-गोद-वेदणीयाणं बादरसांपराइयस्स जो चरिमो द्विदिबंधो सो संखेज्जेहि वस्ससहस्सेहि हाइदूण वस्सस्स अंतो जादो । चरिमसमयबादरसांपराइयस्स मोहणीयस्स विदिसंतकम्मं अंतोमुहुत्तं, तिण्डं घादिकम्माणं द्विदिसंतकम्मं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि, णामा-गोद-वेदणीयाणं ट्ठिदिसंतकम्ममसंखेज्जाणि वस्साणि ।
से काले पढमसमयसुहुमसांपराइयो जादो। ताधे चेव सुहुमसांपराइयकिट्टीणं जाओ द्विदीओ तदो ट्ठिदिखंडयमागाइदं । तदो पदेसग्गमोकट्टिदण उदये थोवं दिण्णं । एवमंतोमुहुत्तद्धमेत्तमसंखेज्जगुणाए सेडीए देदि । गुणसेडिणिक्खेवो सुहुमसांपराइयद्धादो विसेसुत्तरो। गुणसेडीसीसयादो जा अणंतरट्टिदी तत्थ असंखेज्जगुणं । तत्तो विसेसहीणं ताव जाव पुवसमए अंतरमासि तस्स अंतरस्स चरिमादो त्ति । चरिमादो अंतरविदीदो पुव्वसमए जा विदियट्ठिदी तिस्से आदिहिदीए दिज्जमाणं पदेसग्गं संखेज्जगुणहीणं । तत्तो विसेसहीणं ।
काँका अहोरात्रका अन्त अर्थात् कुछ कम एक दिनप्रमाण होता है। नाम, गोत्र व वेदनीय, इनका बादरसाम्परायिकके जो अन्तिम स्थितिबन्ध होता था वह संख्यात वर्षसहस्रोंसे घटकर वर्षका अन्त अर्थात् कुछ कम एक वर्षमात्र रह जाता है । अन्तिमसमयवर्ती बादरसाम्परायिकके मोहनीयका स्थितिसत्व अन्तर्मुहूर्त, तीन घातिया कर्मीका स्थितिसत्व संख्यात वर्षसहस्र; और नाम, गोत्र व वेदनीय, इनका स्थितिसत्व असंख्यात वर्षप्रमाण होता है।
___ अनन्तर समय में प्रथम समय सूक्ष्मसाम्परायिक हो जाता है । उसी समयमें ही सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंकी जो अन्तर्मुहूर्तप्रमाण स्थितियां हैं उनके संख्यातवें भागमात्र स्थितिकांडको ग्रहण करना प्रारम्भ करता है। सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियोंकी उत्कीर्यमाण और अनुत्कीर्यमाण स्थितियोंसे प्रदेशाग्रका अपकर्षण कर उदयमें स्तोक प्रदेशाग्रको देता है । इस प्रकार अन्तर्मुहूर्तमात्र काल तक असंख्यातगुणित श्रेणीसे देता है । गुणश्रेणिनिक्षेप सूक्ष्मसाम्परायिककाल से विशेष अधिक है । गुणश्रेणिशीर्षसे जो अनन्तर स्थिति है उसमें असंख्यातगुणे प्रदेशाग्रको देता है। इससे आगे अन्तरस्थितियों में उत्तरोत्तर क्रमसे पूर्व समयमें जो अन्तर था उस अन्तरकी अन्तिम अन्तरस्थिति तक विशेष हीन प्रदेशाग्रको देता है। अन्तिम अन्तरस्थितिसे, पूर्व समयमें जो द्वितीय स्थिति है उसकी प्रथम स्थितिमें दीयमान प्रदेशाग्र संख्यातगुणा हीन है। इसके आगे उपरिम स्थितिमें दीयमान प्रदेशाग्र विशेष हीन है।
१ सहुमसांपराइयकिट्टीणमुक्कीरिजमाणाणुक्कीरिज्जमाणहिदीहिंतो पदेसग्गस्सासंखेज्जादभागमोकायण पुणो ओकट्टिदसयलदवासंखेजे भागे पुध द्वविय तदसंखेज्जभागमेत्तपदेसगं गुणसेटीए णिसिंचमाणो उदयद्विदीए थोवयरमेव पदेसग्गमसंखेज्जसमयपबद्धपमाणं णिसिंचदि ति वुत्तं होदि ॥ जयध. अ. प. १२०३,
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