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छक्खंड गमे जीवाण
३९८ ] [ १, ९-८, १६. हियाओ' । एसो विसेसो अणंतराणंतरेण संखेज्जदिभागो । सुहुमसां पराइयकिडीओ जाओ पढमसमए कदाओ ताओ बहुआओ; जाओ विदियसमए अपुव्वाओ कीरंति ताओ असंखेज्जगुणहीणाओ । अणंतरोवणिधाए सव्विस्से सुहुमसां पराइयकिर्द्ध । करणद्धाए अपुव्बाओ सुहुमसांपराइयकिडीओ असंखेज्जगुणहीणाए सेडीए कीरंति । सुहुमसां पराइयकिडीस जं पढमसमए पदेसग्गं दिज्जदि तं थोवं; विदियसमए असंखेज्जगुणं । एवं जाव चरिमसमयादोत्ति असंखेज्जगुणं ।
सुहुमसांपराइयकिट्टीसु पढमसमए दिज्जमाणस्स पदेसग्गस्स सेडी परूवणं वत्तइस्साम । तं जहा- जहण्णियाए किट्टीए पदेसग्गं बहुअं । विदियाए किट्टीए विसेस
मतभागेण । तदियाए किट्टीए विसेसहीणमणंतभागेण । एवमणंतरोत्रणिधाए गंतूण चरिमाए सुहुमसांपराइयकिट्टीए पदेसग्गं विसेसहीणं । चरिमादो मुहुमसां पराइय किट्टीदो जहणियाए बादरसांपराइयकिट्टीए दिज्जमानपदेसग्गम सं खेज्जगुणहीणं; तदा विसेसहीणं ।
हैं । यह विशेष अनन्तर - अनन्तररूप से संख्यातवें भागमात्र है। सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियां जो प्रथम समय में की गई हैं वे बहुत हैं। जो द्वितीय समय में अपूर्व कृष्टियां की जाती हैं वे असंख्यातगुणी हीन हैं। इस प्रकार अनन्तरक्रमसे सव सूक्ष्म साम्परायिक कृष्टिकरणकालमें अपूर्व सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियां असंख्यातगुणित छीन श्रेणी के क्रमसे की जाती हैं । सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियों में जो प्रदेशाय प्रथम समय में दिया जाता है वह स्तोक है । द्वितय समय में दिया जानेवाला प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा है । इस प्रकार अन्तिम समय तक असंख्यातगुणा प्रदेशाग्र दिया जाता है ।
सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टियों में प्रथम समय में दीयमान प्रदेशात्र की श्रेणिप्ररूपणाको कहते हैं। वह इस प्रकार है:- जघन्य कृष्टिमें प्रदेशात्र बहुत दिया जाता है । द्वितीय कृष्टिमें अनन्तवें भाग से विशेष हीन प्रदेशान दिया जाता है। तृतीय कृष्टिमें अनन्तवें भागसे विशेष हीन प्रदेशाग्र दिया जाता है। इस प्रकार अनन्तरक्रमसे जा कर अन्तिम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिमें प्रदेशाग्र विशेष हीन दिया जाता है । अन्तिम सूक्ष्मसाम्परायिक कृष्टिसे जघन्य वादरसाम्परायिक कृष्टिमें दीयमान प्रदेशाग्र असंख्यातगुणा हीन है । पुनः इसके आगे (अन्तिम बादरसाम्परायिक कृष्टि तक सर्वत्र अनन्तवें भागसे ) विशेष हीन प्रदेशान
१ कोहस्स पढमकिट्टी कोहे छुद्धे दु माणपढमं च । माणे छुद्धे मायापढमं मायाए संकुद्धे || लोहस्स पटमकिट्टी आदिमसमयकदहुमकिट्टी य । अहियकमा पंच पदा सगसंखेज्जदिमभागेण ॥ लब्धि. ५६७-५६८. २ सहुमाओ किट्टीओ पडिसमयमसंखगुणविहीणाओ । दव्वमसंखेज्जगुणं विदियरस य लोहचरिमोत्ति ॥ लब्धि. ५६९.
३ एतो उवरि सव्वत्थेव विसेसहीणं णिसिंचदि अनंतभागेण जाव चरिमबादरसा पराइय किट्टि त्ति । भयध. अ. प. ११९८. दव्वं पढमे समये देदि हु सहुमेसणंतभागूणं । थूलपटमे असंखगुणूणं तत्तो अनंतभागूणं ॥ लब्धि. ५७०.
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