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३७२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-८, १६. च उवरिमसमएसु' वत्तव्वं जाव पढममणुभागखंडयं चरिमसमयअणुकिण्णं ति ।
तदो से काले अणुभागसंतकम्मे णाणतं । तं जहा- लोभे अणुभागसंतकम्म थोवं । मायाए अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । माणस्स अणुभागसंतकम्ममणतगुणं । कोधस्स अणुभागसंतकम्ममणतगुणं । तेण परं सव्वम्हि अस्सकण्णकरणे एस कमो। अस्सकण्णकरणस्स पढमसमए णिव्यत्तिदाणि अपुयफद्दयाणि बहुवाणि । विदियसमए जाणि अपुव्वाणि अपुव्वफद्दयाणि कदाणि ताणि असंखेज्जगुणहीणाणि । तदियसमए जाणि अपुव्वाणि अपुव्वफद्दयाणि कदाणि ताणि असंखेज्जगुणहीणाणि । एवं समए समए जाणि अपुव्वाणि अपुव्वफद्दयाणि कदाणि ताणि असंखेज्जगुणहीणाणि । गुणगारो पलिदोवमवग्गमूलस्स असंखेज्जदिभागो' । अस्सकण्णकरणस्स चरिमससए लोभस्स अपुचफद्दयाणमादिवग्गणाए अविभागपीडच्छेदग्गं थोवं । विदियस्स अपुव्वफद्दयस्स आदिवग्गणाए अविभागपडिच्छेदग्गं दुगुणं । तदियस्स फद्दयस्स आदिवग्गणाए अविभागपडिच्छेदग्गं तिगुणं । एवं पढमस्स आदिवग्गणाए अविभागच्छेदग्गादो जदिएत्थ
है उसी प्रकार प्रथम अनुभागकांडकके उत्कीर्ण होनेके अन्तिम समय तक उपरिम समयोंमें भी निरूपण करना चाहिये ।
इसके अनन्तर कालमें अनुभागसत्वमें विशेषता है । वह इस प्रकार है- लोभमें अनुभागसत्व स्तोक है । मायामें अनुभागसत्व अनन्तगुणा है। मानका अनुभागसत्व भनन्तगुणा है । क्रोधका अनुभागसत्व अनन्तगुणा है। इससे आगे सब अश्वकर्णकरणमें पही क्रम है । अश्वकर्णकरणके प्रथम समय में निर्तित अपूर्व स्पर्द्धक बहुत हैं । द्वितीय समयमें जो अपूर्व अपूर्वस्पर्द्धक किये हैं वे असंख्यातगुणे हीन हैं। तृतीय समयमें जो अपूर्व अपूर्वस्पर्द्धक किये हैं वे असंख्यातगुणे हीन हैं। इस प्रकार समय समयमें जो अपूर्व अपूर्वस्पर्द्धक किये जाते हैं वे असंख्यातगुणे हीन होते हैं । यहां गुणकार पल्योपमवर्गमूलके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अश्वकर्णकरणके अन्तिम समयमें लोभके अपूर्व अपूर्वस्पर्द्धकोंकी प्रथम वर्गणामें अविभागप्रतिच्छेदान स्तोक, द्वितीय अपूर्वस्पर्द्धककी प्रथम वर्गणामें अविभागप्रतिच्छेदाग्र दुगुणा, और तृतीय स्पर्द्धककी प्रथम वर्गणामें अविभागप्रतिच्छेदाग्र तिगुणा है। इस प्रकार प्रथम स्पर्द्धककी प्रथम वर्गणासम्बधी
.. १ प्रतिषु 'सेसेसु चरिमसमएसु' इति पाठः।
२ पढमाणुभागखंडे पडिदे अणुभागसंतकम्मं तु । लोभादणंतगुणिदं उवरि पि अणंतगुणिदकमं ।। लन्धि. ४८१.
३ आदोलस्स य पटमे णिबत्तिदअपुव्वफडयाणि बहू । पडिसमयं पलिदोवममूलासंखेज्जभागभजियकमा ।। लन्धि. ४८२.
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