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________________ १, ९-८, १६.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए खइयचारित्तपडिवज्जणविहाणं [३७१ वणिधाए सव्वत्थ विसेसहीणं दिज्जदि । पुव्यफद्दयाणमादिवग्गणाए विसेसहीणं चेव दिज्जदि । सेसासु विसेसहीणं दिज्जदि । विदियसमए अपुचफद्दएसु वा पुव्वफद्दएसु वा एक्केक्किस्से वग्गणाए जं दिस्सदि पदेसग्गं तमपुव्वफद्दयआदिवग्गणाए बहुअं, सेसासु अणंतरोवणिधाए सव्वासु विसेसहीणं । तदियसमए वि एसेव कमो । णवरि अपुव्वफद्दयाणि ताणि च अण्णाणि च णिवत्तयदि । तदियसमए जाणि अपुवाणि फद्दयाणि णिव्वत्तिदाणि तेसिमसंखेज्जदिभागे तत्थ वि पदेसग्गस्स दिज्जमाणस्स सेडिपरूवणं- तदियसमए अपुव्वाणमपुव्वफदयाणमादिवग्गणाए पदेसग्गं बहुअं दिज्जदि । विदियाए वग्गणाए विसेसहीणं । एवमणंतरोवणिधाए विसेसहीणं ताव जाव जाणि तदियसमए अपुव्वाणमपुव्वफद्दयाणं चरिमादो वग्गणादो त्ति । तदो विदियसमए अपुचफद्दयाणमादिवग्गणाए पदेसग्गमसंखेज्जगुणहीणं । तत्तो पाए सव्वत्थ विसेसहीणं । जं दिस्सदि पदेसग्गं तमादिवग्गणाए बहुगं, उवरिममणंतरोवणिधाए सव्वत्थ विसेसहीणं । जधा तदियसमए तधा सेसेसु देता है । वहांसे लेकर अनन्तर क्रमसे सब वर्गणाओंमें विशेष हीन प्रदेशाग्रको देता है। पूर्वस्पर्द्धकोंकी प्रथम वर्गणामें विशेष हीन ही देता है। शेष वर्गणाओंमें विशेष हीन प्रदेशाग्रको देता है। द्वितीय समयमें अपूर्वस्पर्द्धकोंमें अथवा पूर्वस्पर्द्धकोंमें एक एक वर्गणामें जो प्रदेशान दिखता है, वह अपूर्वस्पर्द्धकोंकी प्रथम वर्गणामें बहुत और शेष सब वर्गणाओंमें अनन्तर क्रमसे विशेष हीन है । तृतीय समयमें भी यही क्रम है। विशेष केवल यह है कि उन्हीं अपूर्वस्पर्द्धकोको तथा दूसरोंको भी रचता है। तृतीय समयमें उनके असंख्यातवें भागमात्र जिन अपूर्वस्पर्द्धकोंको रचा है उन अपूर्वस्पर्द्धकोंमें दीयमान प्रदेशाग्रकी श्रेणीप्ररूपणा की जाती है- तृतीय समयमें अपूर्व अपूर्वस्पर्द्धकोंकी आदिम वर्गणामें बहुत प्रदेशाग्र दिया जाता है । द्वितीय वर्गणामें विशेष .हीन प्रदेशाग्न दिया जाता है । इस प्रकार अनन्तर क्रमसे विशेष हीन प्रदेशाग्र तृतीय समयमें निर्वर्तित अपूर्व अपूर्वस्पर्द्धकोंकी अन्तिम वर्गणा तक दिया जाता है। उससे द्वितीय समयमें निर्वर्तित अपूर्वस्पर्द्धकोंकी प्रथम वर्गणामें असंख्यातगुणा हीन प्रदेशाग्र दिया जाता है। वहांसे लेकर द्वितीयादि वर्गणाओंमें सर्वत्र विशेष हीन ही प्रदेशाग्र दिया जाता है। जो प्रदेशाग्र दिखता है वह प्रथम वर्गणामें बहुत, तथा ऊपर अनन्तर क्रमसे सब वर्गणाओंमें विशेष हीन है । जिस प्रकार तृतीय समयमें निरूपण किया गया १ पढमादिसु दिज्जकमं तक्कालजफड़याण चरिमो क्ति। हीणकम से काले असंखगुणहीणयं तु हीणकमं ।। लब्धि. ४७९. ___ पदमादिसु दिस्सकर्म तत्कालजफड़याण चरिमो त्ति । हीणकम से काले हीणं हीणे कम तसो ॥ गन्धि.४८०. ३ प्रतिषु 'विदियसमए' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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