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१, ९-८ १६.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए खइयचारित्तपडिवज्जणविहाणं [३५९ गदेसु णउंसयवेदो संकामिज्जमाणो संकामिदो पुरिसवेदे । कुदो? आणुपुव्विसंकमत्तादो। एत्थुवउज्जती गाहा
( संछुहइ पुरिसवेदे इत्थीवेदं ण,सयं चेव ।
- सत्तेव णोकसाए णियमा कोहम्मि संछुहइ ॥ २४ ॥ संकामिज्जमाणदव्यमाहप्पपरूवणा गाहा
(बंधेण होदि उदओ अहिओ 'उदएण संकमो अहिओ।
गुणसेडि असंखेज्जा पदेसअग्गेण बोद्धव्वा ॥ २५ ॥ - णqसयवेदं संकातो पढमसमए थोवं पदेसग्गं संकामेदि । विदियसमए असंखेज्जगुणं । एवं जाव संकामगचरिमसमओ त्ति । णqसयवेदोदएण चडिदस्स समए समए असंखेज्जगुणाए सेडीए पदेसग्गस्स णिज्जरा होदि । वुत्तं च
नपुंसकवेद पुरुषवेदमें संक्रमणको प्राप्त हो जाता है, क्योंकि यहां आनुपूर्वीसंक्रमण है। यहां उपयुक्त गाथा
स्त्रीवेद और नपुंसकवेदको पुरुषवेदमें, तथा पुरुषवेद व हास्यादि छह, इन सात नोकषायोंको संज्वलनक्रोध नियमसे स्थापित करता है ॥२४॥
संक्रमणको प्राप्त होनेवाले द्रव्यके माहात्म्यका प्ररूपण करनेवाली गाथा
बंधसे उदय अधिक है और उदयसे संक्रमण अधिक होता है । इनकी अधिकता प्रदेशाग्रसे असंख्यातगुणित श्रेणीरूप जानना चाहिये । अर्थात् बंधद्रव्यसे उदयद्रव्य असंख्यातगुणा है और उदयद्रव्यसे संक्रमणद्रव्य असंख्यातगुणा है ॥२५॥
नपुंसकवेदको संक्रमाता हुआ प्रथम समयमें स्तोक प्रदेशाग्रका संक्रमण कराता है, द्वितीय समयमें असंख्यातगुणे प्रदेशाग्रका संक्रमण कराता है। इस प्रकार यह क्रम संक्रमणके अन्तिम समय तक रहता है। नपुंसकवेदके उदयके साथ श्रेणी चढ़े हुए जीवके प्रत्येक समयमें असंख्यातगुणित श्रेणीके अनुसार प्रदेशाग्रकी निर्जरा होती है। कहा भी है
१ ठिदिबंधसहस्सगदे संटो संकामिदो हवे पुरिसे । पडिसमयमसंखगुण संकामगचरिमसमओ ति ॥ लब्धि . ४४०.
२ लब्धि. ४३८; जयध. अ. प. १०९०.
३ लब्धि. ४४१. एत्थ गुणसेढि ति वुत्ते गुणगारपत्ती गहेयव्वा |xxx पदेसग्गेण बंधो थोवो उदयो असंखेज्जगुणो संकमो असंखेजगुणो । पदेसग्गेण णिहालिज्जमाणे बंधोदयसंकमाणं समाणकालभावीणं थोवबहुत्तमेवं होदि ति वुत्तं होदि । जयध. अ. प. १०९२.
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