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१, ९-८, १६.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए खइयचारित्तपडिवज्जणाविहाणं [३५३ गुणो । तिण्हं घादिकम्माणं द्विदिबंधो असंखेज्जगुणो । वेदणीयस्स विदिबंधो असंखेज्जगुणो' । एवं संखेज्जाणि द्विदिबंधसहस्साणि गदाणि । तदो अण्णो द्विदिबंधो एक्कसराहेण मोहणीयस्स थोत्रो । तिण्हं धादिकम्माणं विदिबंधो असंखेज्जगुणो । मामा-गोदाणं डिदिबंधो असंखेज्जगुणों। वेदणीयस्स हिदिबंधो विसेसाहिओं । एदेण कमेण संखेज्जाणि ट्ठिदिबंधसहस्साणि गदाणि । तदो द्विदिसंतकम्मं असण्णिठिदिबंधेण समगं जादं । तदो संखेज्जेसु ठिदिबंधसहस्सेसु गदेसु चरिंदियट्ठिदिबंधेण समगं जाद। एवं तीइंदिय-बीइंदियट्ठिदिबंधेण समगं जादं । तदो संखेज्जेसु हिदिखंडयसहस्सेसु गदेसु एइंदियट्ठिदिबंधेण समगं ट्ठिदिसंतकम्मं जादं । तदो संखेज्जेसु हिदिखंडयसहस्सेसु गदेसु णामा-गोदाणं पलिदोवमट्ठिदिगं संतकम्मं जादं । ताधे चदुण्हं कम्माणं दिवड्डपलिदोवमट्ठिदिसंतकम्म, मोहणीयस्स वेपलिदोवमहिदिसंतकम्मं । एदम्हि ट्ठिदिखंडए उक्किण्णे णामागोदाणं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागिगं द्विदिसंतकम्मं । ताधे अप्पाबहुगं- सव्वत्थोवं
असंख्यातगुणा, तीन घातिया कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा, और वेदनीयका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है । इस प्रकार संख्यात स्थितिबन्धसहस्र वीत जाते हैं। तब अन्य स्थितिबन्ध एक साथ मोहनीयका स्तोक, तीन घातिया कौका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा, नाम-गोत्र कौंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा, और वेदनीयका स्थितिबन्ध विशेष अधिक होता है । इस क्रमसे संख्यात स्थितिबन्धसहस्त्र वीत जाते हैं । तब स्थितिसत्व असंही पंचेन्द्रियके स्थितिबन्धके सदृश होता है। पश्चात् संख्यात स्थितिबन्धसहस्रोंके वीत जानेपर चतुरिन्द्रयके स्थितिबन्धके सदृश स्थितिसत्व होता है। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय व द्वीन्द्रियके स्थितिबन्धके सदृश स्थितिसत्व होता है। पुनः संख्यात स्थितिकाण्डकसहनोंके वीत जानेपर एकेन्द्रियके स्थितिबन्धके सदृश स्थितिसत्व होता है । तत्पश्चात् संख्यात स्थितिकाण्डकसहस्रोंके वीतनेपर नाम-गोत्र कर्मीका सत्व पल्योपममात्र स्थितिवाला होता है। उस समयमें चार कर्मोका स्थितिसत्व डेढ़ पल्योपम और मोहनीयका स्थितिसत्व दो पल्योपमप्रमाण होता है। इस स्थितिकांडकके उत्कीर्ण होनेपर नाम गोत्र कर्मीका स्थितिसत्व पल्योपमके संख्यातवें भागमात्र होता है । उस समयमें अल्पबहुत्व इस प्रकार है - नाम-गोत्र कर्मोंका स्थितिसत्व सबसे
१ तेत्तियमेत्ते बंधे समतीदे वेदणीयहेट्टा दु। तीसियघादितियाओ असंखगुणहीणया होति ॥ लब्धि. ४२४.
२ तेत्तियमेक्ते बंधे समतीदे वीसियाण हेट्ठा दु। तीसियघादितियाओ असंखगुणहीणया होंति ॥ लन्धि. ४२५.
३ तक्काले वेयणियं णामागोदाउ साहियं होदि। इदि मोहतीसवीसियवेयणियाणं कमो बंधे ॥ लब्धि.४२६ . ४ बंधे मोहादिकमे संजादे तेत्तियेहिं बंधेहिं । ठिदिसंतमसण्णिसमं मोहादिकमंतहा संतेलिब्धि. ४२७.
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