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________________ ३५२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१,९-८, १६. असंखेज्जदिभागिओ ठिदिबंधो जादो । ताधे सव्वेसि कम्माणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ठिदिबंधो जादो । ताधे द्विदिसंतकम्म सागरोवमसहस्सपुधत्तं अंतोसदसहस्सस्स' । जाधे पढमदाए मोहणीयस्स पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो हिदिबंधो जादो ताधे अप्पाबहुअं- णामा-गोदाणं द्विदिबंधो थोवो । चदुण्डं कम्माणं द्विदिबंधो तुल्लो असंखेज्जगुणो । मोहणीयस्स ट्ठिदिबंधो असंखेज्जगुणो। एदेण कमेण संखेजाणि द्विदिबंधसहस्साणि गदाणि । तदो जम्हि अण्णो द्विदिबंधो तम्हि एक्कसराहेण णामागोदाणं द्विदिवंधो थोवो। मोहणीयस्स द्विदिबंधो असंखेज्जगुणो। चदुण्हं कम्माणं हिदिबंधो असंखेज्जगुणों । एदेण कमेण संखेज्जाणि द्विदिबंधसहस्साणि गदाणि । तदो जम्हि अण्णो द्विदिबंधो तम्हि एक्कसराहेण मोहणीयस्स द्विदिबंधो थोवो। णामागोदाणं द्विदिबंधो असंखेज्जगुणों। चदुहं कम्माणं द्विदिवंधो तुल्लो असंखेज्जगुणो । एदेण कमेण संखेज्जाणि द्विदिबंधसहस्साणि गदाणि । तदो जम्हि अण्णो द्विदिबंधो तम्हि एक्कसराहेण मोहणीयस्स विदिबंधो थोवो। णामा-गोदाणं द्विदिबंधो असंखेज्ज नीयका भी पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिबन्ध हो जाता है। उस समय सब कर्मीका पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिबन्ध होता है। उस समयमें स्थितिसत्व शतसहस्रके भीतर सहस्रपृथक्त्व सागरोपमप्रमाण रहता है। जब प्रथमतः मोहनीयका पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र स्थितिबन्ध होता है तब अल्पबहुत्वका क्रम इस प्रकार है-नाम-गोत्र काँका स्थितिबन्ध स्तोक, चार कर्मोका स्थितिबन्ध तुल्य असंख्यातगुणा, और मोहनीयका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । इस क्रमसे संख्यात स्थितिबन्धसहस्र चीत जाते हैं । तब जिस समयमें अन्य स्थितिबन्ध होता है उस समयमें एक साथ नाम-गोत्र कर्मोंका स्थितिबन्ध स्तोक, मोहनीयका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा, और चार कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा होता है। इस क्रमसे संख्यात स्थितिबन्धसहस्र वीत जाते हैं । तब जिस समय में अन्य स्थितियन्ध होता है उस समयमें एक साथ मोहनीयका स्थितिबन्ध स्तोक, नाम-गोत्र कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा, और चार कर्मीका स्थितिबन्ध तुल्य असंख्यातगुणा होता है। इस क्रमसे संख्यात स्थितिबन्धसहस्र वीत जाते हैं। तब जिस समयमें अन्य स्थितिबन्ध होता है उस समयमें एक साथ मोहनीयका स्थितिबन्ध स्तोक, नाम-गोत्र कर्मोंका स्थितिबन्ध १ एवं पलं जादा वीसीया तीसिया य मोहो य। पल्लासंखं च कर्म बंधेण य वीसियतियाओ॥लब्धि.४२०. २ प्रतिषु · हिदिसंकम' इति पाठः। ३ उदधिसहस्सपुधक्तं अब्भंतरदो दु सदसहस्सस्स । तकाले ठिदिसतो आउगवज्जाण कम्माण ॥ लब्धि. ४२१. ४ मोहगपल्लासंखढिदिबंधसहस्सगेसु तीदेस । मोहो तीसिय हेटा असंखगुणहीणयं होदि । लब्धि. ४२२. ५ तेत्तियमेत्ते बंधे समतीदे वीसियाण हेट्टादु । एकसराहे मोहो असंखगुणहीणयं होदि ॥ लब्धि. ४२३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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