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१, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए चारित्तपडिवज्जणविहाणं [ ३०७ वस्साणि । सेसाणं कम्माणं द्विदिबंधो संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि ।
पुरिसवेदस्स पढमट्ठिदीए जाधे वे आवलियाओ सेसाओ ताधे आगाल-पडिआगालो वोच्छिण्णो । अंतरकदादो पाए छण्णोकसायाणं पदेसग्गं ण संछुभदि पुरिसवेदे, कोधसंजलणे संछुहदि, आणुपुबीसंकमत्तादो। जो पढमसमयअवेदो तस्स पुरिसवेदस्स दुसमऊणदोआवलियासु बद्धा अणुवसंता, तेसिं पदेसग्गमसंखेज्जगुणाए सेडीए उवसामिज्जदि। परपयडीए पुण अधापवत्तसंकमेण संकामिज्जदि । पढमसमयअवेदेण संकामिजमाणपदेसग्गं बहुअं। से काले विसेसहीणं । एस कमो जाव सव्वमुवसंतं इदि । जोगसमयपबद्धमधिकिच्च एवं उत्तं, जोगापत्ताणं णाणासमयपबद्धाणं उत्तकमाणुववत्तीदो।
बत्तीस वर्ष, और शेष कौंका स्थितिवन्ध संख्यात वर्षसहस्रमात्र होता है।
पुरुषवेदकी प्रथमस्थितिमें जब दो आवलियां शेष रहती हैं तब आगाल व प्रत्यागालका व्युच्छेद हो जाता है। अन्तरकरणसमाप्तिसमयसे लेकर हास्यादिक छह नोकषायोंके प्रदेशाग्रको पुरुषवेदमें स्थापित नहीं करता है, किन्तु आनुपूर्वीसंक्रमण होनेसे संज्वलनक्रोधमें स्थापित करता है। जो प्रथम समय अपगतवेदवाला है उसके पुरुषवेदके दो समय कम दो आवलिमात्र समयप्रबद्ध जो अनुपशान्त हैं उनके प्रदेशाग्रको वह असंख्यातगुणी श्रेणीद्वारा उपशान्त करता है। पुनः अधःप्रवृत्तसंक्रमणके द्वारा परप्रकृति (संज्वलनक्रोध) में संक्रमण करता है। प्रथम समय अपगतवेदीद्वारा संक्रमण कराया जानेवाला प्रदेशाग्र अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी अवेदभागके प्रथम समयमें बहुत है। अनन्तर कालमें विशेष हीन है । यह विशेषहीनक्रम पूर्ण उपशान्त होनेतक जानना चाहिये । योगसे प्राप्त समयप्रबद्धका अधिकार करके यह क्रम कहा गया है, क्योंकि, योगसे अप्राप्त नाना समयप्रबद्धों के उक्त क्रम बन नहीं सकता।
१ तच्चरिमे पुंबंधी सोलसवस्साणि संजलणगाणं । तदुगाणं सेसाण संखेजसहस्सवस्साणि॥ लब्धि. २६३.
२ पुरिसस्स य पदमठिदी आवलिदोसुवरिदासु आगाला । पडिआगाला छिण्णा पडियावलियादुदीरणदा॥ लब्धि. २६४.
__ ३ अंतरकदादु छष्णोकसायदवं ण पुरिसगे देदि । एदि हु संजलणस्स य कोधे अणुपुष्विसंकमदो । लब्धि. २६५.
___पुरिसस्स उत्तणवकं असंखगुणियफमेण उवसमदि। संकमदि हु हीणकमेणधापवतेण हारेण ।। लब्धि. २६६.
५ प्रतिषु ' एगसमय - ' इति पाठः ।
६ चतुःस्थामपतितहानि-वृद्धिपरिणतयोगसंचितसमयप्रबद्धानां द्रव्यहीनाधिकमावमाश्रित्य तेसंक्रमणद्रध्यस्यापि चतु:स्थानहानिवृद्धिक्रमस्य प्रवचनयुक्त्या प्रवृत्तिर्दर्शिता || लब्धि. २६६ टीका.
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