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१, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए चारित्तपडिवज्जणविहाणं [२९७ द्विदिबंधो पलिदोवमस्स संखेज्जदिमागेण हीणो। तदो द्विदिबंधपुधत्ते गदे मोहणीयस्स वि पलिदोवमट्टिदिगो ठिदिबंधो जादो। तदो जो अण्णो हिदिबंधो सो आयुगवज्जाणं कम्माणं पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो होदि ।।
एत्थ द्विदिबंधस्स अप्पाबहुगं उच्चदे । तं जहा- णामा-गोदाणं द्विदिबंधो थोवो। मोहणीयवज्जाणं कम्माणं विदिबंधो तुल्लो संखेज्जगुणो। मोहणीयस्स विदिबंधो संखेजगुणो । एदेण अप्पाबहुगविधिणा बहुसु द्विदिबंधसहस्सेसु गदेसु णामा-गोदाणं ( पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो द्विदिबंधो जादो, मोहणीयवज्जाणं पुण कम्माणं विदिबंधो) पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागो चेव । एत्थ अप्पाबहुगं- णामा-गोदाणं द्विदिबंधो थोवो । चदुण्हं कम्मागं द्विदिबंधो तुलो असंखेज्जगुणो । मोहणीयस्स द्विदिवंधो संखेज्जगुणो। एदेण अप्पाबहुगविधिणा बहुसु द्विदिबंधसहस्सेसु गदेसु चउण्हं कम्माणं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो द्विदिबंधो जादा । तावे अप्पाबहुगं- णामा-गोदाणं हिदिबंधो थोवो । चदुण्हं कम्माणं विदिबंधो असंखेज्जगुणो । मोहणीयस्स विदिबंधो असंखेज्जगुणो । एदेण अप्पाबहुगविधिणा बहुसु हिदिबंधसहस्सेसु गदेसु तदो मोहणीयस्स पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ट्ठिदिवंधो जादो । ताधे अप्पाबहुगं- णामा-गोदाणं द्विदिबंधो थोत्रो । चउण्हं कम्माणं विदिबंधो असंखेज्जगुणो। मोहणीयस्स द्विदिबंधो असंखेज्जगुणो ।
भागसे हीन है। पश्चात् स्थितिवन्धपृथक्त्वके व्यतीत होनेपर मोहनीयका भी पल्योपमस्थितिवाला वन्ध होने लगता है। तदनन्तर जो अन्य स्थितिबन्ध है वह आयुको छोड़कर शेष कर्मोंका पल्योपमके संख्यातवें भागमात्र होता है।
अब यहां स्थितिवन्धका अल्पवहुत्व कहा जाता है। वह इस प्रकार है-नाम व गोत्र प्रकृतियोंका स्थितिबन्ध स्तोक है। मोहनीयको छोड़कर शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध परस्पर तुल्य होता हुआ संख्यातगुणा है । मोहनीयका स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इस अल्पवहुत्वविधिसे बहुत स्थितिबन्धसहस्रोंकेवीत जानेपर नाम-गोत्र प्रकृतियोंका (स्थितिबन्ध पल्योपमके असंख्यातवें साग हो गया, किन्तु मोहनीयको छोड़कर शेष कर्मोका स्थितिबन्ध) पल्योपमके संख्यात भागमात्र ही है। यहां अल्पवहुत्व इस प्रकार है-नामगोत्र प्रकृतियोंका स्थितिवन्ध स्तोक है। चार कर्मोंका स्थितिबन्ध तुल्य असंख्यातगुणा है। मोहनीयका स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इस अल्पवहुत्वविधिसे बहुत स्थितिबन्धसहस्रोंके वीत जानेपर चार कर्मोंका स्थितिवन्ध पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र हो जाता है। तब अल्पबहुत्व इस प्रकार होता है-नाम गोत्र प्रकृतियोंका स्थितिबन्ध स्तोक है। चार कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। मोहनीयका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इस अल्पबहुत्वविधिसे बहुत स्थितिबन्धसहस्रोंके व्यतीत होनेपर तब मोहनीयका स्थितिबन्ध पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र हो जाता है। उस समय अल्पबहुत्वका क्रम यह है-नाम-गोत्र प्रकृतियोंका स्थितिबन्ध स्तोक है। चार कर्मोंका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। मोहनीयका स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । इस क्रमसे बहुत
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