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१, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए चारित्तपडिवजणविहाणं [२८३ पलिदोवमं संखेज्जगुणं । पढमद्विदिविसेसो संखेज्जगुणो । अपुव्वकरणस्स चरिमट्ठिदिबंधो संखेज्जगुणो । तस्सेव पढमट्ठिदिबंधो संखेज्जगुणो । अपुधकरणस्स चरिमट्टिदिसंतकम्म संखेज्जगुणं । तस्सेव पढमट्ठिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं ।
एत्थ जाणि संजमलद्धिट्ठाणाणि ताणि तिविहाणि होति । तं जहा- पडिवादट्ठाणाणि उप्पादट्ठाणाणि तव्वदिरित्तट्ठाणाणि त्ति । तत्थ पडिवादट्ठाणं णाम जम्हि हाणे मिच्छत्तं वा असंजमसम्मत्तं वा संजमासंजमं वा गच्छदि तं पडिवादट्ठाणं । उप्पादट्ठाणं णाम जम्हि ठाणे संजमं पडिवज्जदि तं उप्पादट्ठाणं णाम । सेससव्याणि चेव चरित्तट्ठाणाणि तव्वदिरित्तट्ठाणाणि णाम । एदेसिं लद्धिट्ठाणाणमप्पाबहुगं । तं जहा- सव्वत्थोवाणि पडिवादट्ठाणाणि । कुदो ? मिच्छत्तं वा असंजमसम्मत्तं वा संजमासंजमं वा गच्छंतस्स चरिमसमयसंजदस्स जहण्णपरिणाममादि कादूण जा उक्कस्सपडिवादट्ठाणं ति सव्वेसिं गहणादो । उप्पादट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि। कुदो ? पडिवादट्ठाणाणि अपडिवाद-अपडिवजमाणट्ठाणाणि च मोतूण सेससव्वट्ठाणाणं गहणादो । तव्वदिरित्तट्ठाणाणि असंखेज
प्रथम स्थितिका विशेष संख्यातगुणित है। उससे अपूर्वकरणका अन्तिम स्थितिबन्ध संख्यातगुणित है । उससे उसका ही प्रथम स्थितिबन्ध संख्यातगुणित है। उससे अपूर्वकरणका अन्तिम स्थितिसत्त्व संख्यातगुणित है। उससे उसका ही प्रथम स्थितिसत्त्व संख्यातगुणित है।
__ यहांपर जो संयमलब्धिके स्थान हैं, वे तीन प्रकार के होते हैं। वे इस प्रकार हैंप्रतिपातस्थान, उत्पादस्थान और तद्व्यतिरिक्तस्थान। उनमें पहले प्रतिपातस्थानको कहते हैं- जिस स्थानपर जीव मिथ्यात्वको, अथवा असंयमसम्यक्त्वको, अथवा संयमासंयमको प्राप्त होता है वह प्रतिपातस्थान है। अब उत्पादस्थानको कहते हैंजिस स्थानपर जीव संयमको प्राप्त होता है, वह उत्पादस्थान है। इनके अतिरिक्त शेष सर्व ही चारित्रस्थानोंको तद्ध्यतिरिक्त स्थान कहते हैं। अब इन संयमलब्धिस्थानोंका अल्पबहुत्व कहते हैं। वह इस प्रकार है-प्रतिपातस्थान सबसे कम हैं, क्योंकि, मिथ्या. त्वको, अथवा असंयमसम्यक्त्वको, अथवा संयमासंयमको जानेवाले अन्तिमसमयवर्ती संयतके जघन्य परिणामको आदि करके उत्कृष्ट प्रतिपातस्थान तकके सभी स्थानोंका ग्रहण किया गया है। प्रतिपातस्थानोंसे उत्पादस्थान असंख्यातगुणित हैं, क्योंकि, प्रतिपातस्थानोंको और अप्रतिपात-अप्रतिपद्यमानस्थानोंको छोड़कर शेष सर्व स्थानोंका ग्रहण किया गया है । उत्पादस्थानोसे तद्व्यतिरिक्त स्थान असंख्यातगुणित हैं, क्योंकि,
तत्थ य पडिवादगया पडिवज्जगया त्ति अणुभयगया ति। उवरुवरि लठिाणा लोयाणमसंखछटाणा। लब्धि. १९१.
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