________________
२७६]
छक्खंडागमे जीवट्टाणं (१, ९-८, १४. उक्कस्सिया लद्धी कस्स ? संजदासंजदस्स सव्वविसुद्धस्स से काले संजमगाहयस्स । जहण्णिया लद्धी कस्स ? तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स से काले मिच्छत्तं गाहयस्स। अप्पाबहुगं। तं जहा-जहणिया संजमासजमलद्धी थोवा । उक्कस्सिया संजमासंजमलद्धी अणंतगुणा।
एत्तो संजमासंजमलद्धीए हाणाणि वत्तइस्सामो। तं जहा- जहण्णए संजमासंजमलद्धिट्ठाणे अणंताणि फद्दयाणि । तदो विदियलद्धिट्ठाणं अणंतभागुत्तरं । एवं छट्ठाणपदिदाणं लद्धिट्ठाणाणं पमाणमसंखेज्जा लोगा । आदीदो प्पहुडि तिरिक्ख-मणुस्ससंजदासंजदाणं पडिवादढाणाणि असंखेज्जलोगमेत्ताणि हवंति । तदो अंतरं होदण तिरिक्ख-मणुस्ससंजदासंजदाणं पडिवज्जट्ठाणाणि असंखेज्जलोगमेत्ताणि होति । तदो अंतरं होदूण तिरिक्ख-मणुस्ससंजदासंजदाणं अपडिवाद-पडिवज्जमाणट्ठाणाणि असंखेज्ज
शंका- उत्कष्ट संयमासंयम लब्धि किसके होती है ?
समाधान-सर्वविशुद्ध और अनन्तर समयमें संयमको ग्रहण करनेवाले संयतासंयतके उत्कृष्ट संयमासंयम लब्धि होती है।
शंका-जघन्य संयमासंयम लब्धि किसके होती है ?
समाधान-जघन्य लब्धिके योग्य संक्लेशको प्राप्त और अनन्तर समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले संयतासंयतके जघन्य संयमासंयम लब्धि होती है।
अब अल्पबहुत्व कहते हैं । वह इस प्रकार है -जघन्य संयमासंयम लब्धि अल्प होती है । उससे उत्कृष्ट संयमासंयम लब्धि अनन्तगुणित है।
अब इससे आगे संयमासंयम लब्धिके स्थानोंको कहेंगे। वह इस प्रकार हैजघन्य संयमासंयम लब्धिस्थानमें अनन्त स्पर्धक होते हैं। उससे द्वितीय संयमासंयम लब्धिस्थान अनन्त भाग अधिक होता है । इस प्रकार षट्स्थानपतित लब्धिस्थानोंका प्रमाण असंख्यात लोक है। आदिसे, अर्थात् जघन्य लब्धिस्थानसे, लेकर तिर्यंच और मनुष्य संयतासंयतोंके प्रतिपात स्थान असंख्यात लोकमात्र होते हैं। तत्पश्चात् अन्तर होकर तिर्यंच और मनुष्य संयतासंयतोंके प्रतिपद्यमान स्थान असंख्यात लोकमात्र होते हैं। तत्पश्चात् अन्तर होकर तिर्यंच और मनुष्य संयतासंयतोंके अप्रतिपात-अप्रतिपद्यमान
१ क-प्रतौ तप्पाओगास्स संकिलिट्ठस्स' इति पाठः । २ अवरवरदेसलद्धी से काले मिच्छसंजमुवत्रपणे । अवरा दु अणंतगुणा उकस्सा देसलद्वी दु॥ लब्धि. १८२. ३ प्रतिषु 'दोवा ' इति पाठः। ४ अवरे देसहाणे होति अर्णताणि फड़याणि तदो। छट्टाणगदा सव्वे लोयाणमसंखछटाणा लब्धि, १८३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org