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१, ९-८, १४.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए चारित्तपडिवजणविहाणे २७५ संजमद्धा असंजमद्धा सम्मामिच्छत्तद्धाओ एदाओ छप्पि अद्धाओ तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ। पढमसमय (-संजदा-) संजदेण कदगुणसेडीणिक्खेवो संखेज्जगुणो । एगंतवड्ढावड्डीए चरिमद्विदिबंधस्स आवाधा संखेज्जगुणा । अपुव्वकरणपढमट्ठिदिबंधस्स आबाधा संखेज्जगुणा। एगंतवड्ढावड्डीए चरिमसमयट्ठिदिखंडओ असंखेज्जगुणो । कुदो ? पलिदोवमस्स संखेजदिभागत्तादो। अपुवकरणस्स पढमो जहण्णओ हिदिखंडओ संखेज्जगुणो । पलिदोवमं संखेज्जगुणं । अपुव्वस्स पढमो उक्कस्सओ हिदिखंडओ संखेज्जगुणो । एगंतवड्डावड्डीए चरिमट्ठिदिबंधो संखेज्जगुणो । अपुवकरणस्स पढमो द्विदिबंधो संखेज्जगुणो । एगंताणुवड्डाबड्डीए चरिमसमयट्ठिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं । पढमसमयअपुवकरणस्स हिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणं ।
___ एत्थ तिव्व-मंददाए सामित्तमप्पाबहुगं च वत्तइस्सामो । तत्थ सामित्तं
उदयका काल, जघन्य मिथ्यात्वके उदयका काल, जघन्य संयमका काल, जघन्य असंयमका काल, और जघन्य सम्यग्मिथ्यात्वके उदयका काल, ये छहों काल परस्पर तुल्य और संख्यातगुणित हैं । उससे प्रथमसमयवर्ती संयतासंयतके द्वारा की गई गुणश्रेणीका निक्षेप संख्यातगुणित है। उससे एकान्तवृद्धावृद्धिके अन्तमें संभव चरम स्थितियन्धकी आबाधा संख्यातगुणित है । उससे अपूर्वकरणके प्रथमसमयसम्बन्धी स्थितिबन्धकी अवाधा संख्यातगुणित है । उससे एकान्तवृद्धावृद्धिके अन्तिम समयका स्थितिकांडक असंख्यातगुणित है, क्योंकि, वह पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण होता है। उससे अपूर्वकरणका प्रथम जघन्य स्थितिकांडक संख्यातगुणित है । उससे पल्योपम संख्यातगुणित है। उससे अपूर्वकरणका प्रथम उत्कृष्ट स्थितिकांडक संख्यातगुणित है। उससे एकान्तवृद्धावृद्धिके अन्तमें संभव अन्तिम स्थितिबन्ध संख्यातगुणित है । उससे अपूर्वकरणका प्रथम स्थितिबन्ध संख्यातगुणित है। उससे एकान्तानुवृद्धावृद्धिके अन्तिमसमयसम्बन्धी स्थितिसत्त्व संख्यातगुणित है । उससे प्रथमसमयवर्ती अपूर्वकरणका स्थितिसत्त्व संख्यातगुणित है।
यहांपर संयमासंयम लब्धिकी तीव्र-मन्दताका स्वामित्व और अल्पबहुत्व कहेंगे। उसमें पहले स्वामित्व कहते हैं
१ अवरा मिच्छतियद्वा अविरद तह देससंजमद्धा य । छणि समा संखगुणा ततो देसस्स गुणसेटी। लब्धि. १७८.
२चरिमाबाहा तत्तो पढमाबाहा य संखगुणियकमा । तत्तो असंखगुणियो चरिमहिदिखंडओ णियमा । पल्लस्स संखभागं चरिमझिविखंडयं हवे जम्हा। तम्हा असंखगुणियं चरिमं ठिदिखंडयं होइ॥ लब्धि. १७९, १८०.
३ पढमे अवरो पल्लो पटमुक्कस्सं च चरिमठिदिबंधो। पढमो चरिमं पटमट्टिदिसंतं संखगुणिदकमा ॥ लब्धि. १८१.
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