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१, ९-८, ५.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए पढमसम्मत्तुप्पादणं
[२२९ काले चेव सव्वत्थ विदिबंधो समप्पदि, द्विदिखंडयउक्कीरणकालेण समाणबंधगद्धत्तादो। तम्हि चेव समए चरिमाणुभागखंडयचरिमफाली वि पददि', अणुभागखंडयउक्कीरणद्धाए ओवट्टिदट्ठिदिबंधकालम्हि विगलरूवाभावादो । एवं बहूहि ट्ठिदिखंडयसहस्सेहि अदिक्कतेहि अपुव्यकरणद्धा समप्पदि । णवरि अपुचकरणस्स पढमसमयट्ठिदिसंत-ट्ठिदिबंधेहितो अपुव्यकरणस्स चरिमसमयट्ठिदिसंत-ट्ठिदिबंधाणं दीहत्तं संखेज्जगुणहीणं होदि । अपुष्वकरणपढमसमयअणुभागसंतादो चरिमसमये अप्पसत्थपयडीणमणुभागसंतकम्ममणंतगुणहीणं, पसत्थाणमणंतगुणं होदि । एवमपुव्यपरिणामकज्जपरूवणा कदा ।
तदणंतरउवरिमसमए अणियट्टीकरणं पारभदि । ताधे चेव अण्णो द्विदिखंडओ,
स्थितिकांडककी चरम फालीके पतनकालमें ही सर्वत्र स्थितिबन्ध समाप्त हो जाता है, क्योंकि, स्थितिकांडकके उत्कीरणकालके साथ स्थितिबन्धका काल समान होता है। उस ही समयमें अन्तिम अनुभागकांडककी अन्तिम फाली भी नष्ट होती है, क्योंकि, अनुभागकांडकके उत्कीरणकालसे अपवर्तन किये गये स्थितिबन्धके कालमें विकलरूपता, अर्थात् विभिन्नता, नहीं हो सकती है । इस प्रकार अनेक सहस्र स्थितिकांडकोंके व्यतीत होनेपर अपूर्वकरणका काल समाप्त होता है । यहां विशेषता यह है कि अपूर्वकरणके प्रथम समयसम्बन्धी स्थितिसत्त्व और स्थितिबन्ध, इन दोनोंसे अपूर्वकरणके अन्तिम समयसम्बन्धी स्थितिसत्त्व और स्थितिबन्ध, इन दोनोंकी दीर्घता संख्यातगुणी हीन होती है । अपूर्वकरणके प्रथम समयसम्बन्धी अनुभागसत्त्वसे अन्तिम समयमें अप्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभागसत्त्वकर्म अनन्तगुणा हीन होता है और प्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभागसत्त्व अनन्तगुणा अधिक होता है । इस प्रकार अपूर्वकरण परिणामोंके कार्योंका निरूपण किया।
___ उक्त अपूर्वकरणका काल समाप्त होनेके अनन्तर आगेके समयमें अनिवृत्तिकरणको प्रारम्भ करता है । उसी समयमें ही अन्य स्थितिखंड, अन्य अनुभागखंड और
१ ठिदिखंडगे समते अणुभागखंडयं च हिदिबंधगद्वा च समत्ताणि भवति । जयध. अ. प. ९५.. २ एवं ठिदिखंडयसहस्सेहिं बहुएहिं गदेहिं अपुवकरणद्। समता भवदि । जयध. अ. प. ९५२.
३ णवरि पढमहिदिखंडयादो विदियट्टिदिखंडयं विसेसहीणं संखेजविभागण एवमणतराणतरादो विसेसहीण गेदव्वं जाव चरिमविदिखंडयं ति । xxx अपुब्धकरणस्स पढमसमए ट्ठिदिसंतकम्मादो चरिमसमए टिदिसंतकम्मं संखेज्जगुणहीणं । किं कारणं ? अपुवकरणपढमसमए पुव्वणिरुद्धंतोकोडाकोडीमेत्तसागरोवमाणं संखेज मागे अपुवकरणविसोहिणिबंधणहिदिखंडयसहस्सेहिं घादेहिं संखेन्जदिमागमेत्तस्सव हिदिसंत. कम्मस्स परिससिदत्तादो। जयध. अ. प. ९५२. आउगवजाणं ठिदिघादो पढमादु चरिमठिदिसंतो। ठिदिबंधो य अपुरो होदु हु संखेज्जगुणहीणो ॥ लब्धि. ७८.
४ पदमापुव्वरसादो चरिमे समये पअच्छदराणं । रससचमणंतगुणं अर्णतगुणहीणयं होदि । लन्धि. ८२.
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