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________________ २०२] छक्खंडागमे जीवट्ठाण [१,९-७, ४३. चरिमसमओ त्ति । सो चेव बंधो बंधावलियादिक्कतो ओकड्डेदूण उदए संछुब्भमाणो' उदीरणा होदि । सो चेव दुसमयाधियंबंधावलियाए ट्ठिदिक्खएण उदए पदमाणो उदयसण्णिदो होदि त्ति। __ एक्केक्किस्से पयडीए पयडिबंधो अणुभागबंधो द्विदिबंधो पदेसबंधो चेदि चउव्विहो बंधो। तत्थ एक्केक्को चउबिहो उक्कस्सो अणुक्कस्सो जहण्णो अजहण्णो त्ति । एदेहि सोलसेहि सव्यबंधपयडीओ गुणिदे असीदीए ऊणवेसहस्सबंधवियप्पा होति (१९२०)। एवमुदओदीरण-सत्ताणं पि भेदा परूवेदव्वा । तेसिं पमाणमेदं २३६८ । २३६८ । २३६८ । तेसिं सव्वसमासो ९०२४ । सव्वेदम्हि परूविदे - सत्तमी चूलिया समत्ता होदि । कहलाता है। वही बन्ध बंधावलीके, अर्थात् बंधनेकी आवलीके, व्यतीत होनेपर अपकर्षण कर जब उदयमें संक्षुभ्यमान किया जाता है, तब वह उदीरणा कहलाता है। वही बन्ध दो समय अधिक बंधावलीके व्यतीत हो जानेपर स्थितिके, अर्थात् निषेकस्थितिके, क्षयसे उदयमें पतमान, अर्थात् गिरता हुआ, 'उदय' इस संज्ञावाला होता है। इस प्रकार बन्धकी प्ररूपणासे सत्त्व, उदय और उदीरणाकी भी प्ररूपणा सिद्ध हो जाती है। ___ एक एक प्रकृतिका प्रकृतिबन्ध, अनुभागवन्ध, स्थितिबन्ध और प्रदेशबन्ध, इस प्रकार चार तरहका बन्ध होता है। उनमें वह एक एक बन्ध भी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्यके भेद से चार प्रकारका होता है । इन सोलह भेदोंके द्वारा सर्व बन्धप्रकृतियोंको गुणित करनेपर (१२०४ १६ = १९२०) अस्सी कम दो हजार बन्धके भेद हो जाते हैं। इसी प्रकार उदय, उदीरणा और सत्ताके भी भेद प्ररूपण करना चाहिए । उनका प्रमाण यह है उदयके विकल्प (१४८४ १६ = ) २३६८. उदीरणाके ,, (१४८ x १६ = ) २३६.. सत्ताके , (१४८४१६%)२३६८. इन सबका जोड़ (१९२० + २३६८ + २३६८ + २३६८ =)९०२४ होता है। इस सबके प्ररूपण करनेपरसातवीं चूलिका समाप्त होती है । शत पाठः। १ प्रतिषु 'संत्तुब्भमाणो' इति पाठः। २ प्रतिषु 'दुसमयाविय- ' इति पाठः । ३ पयडिडिदिअणुभागप्पदसबंधो ति चदुविहो बंधो। उक्कस्समणुक्कस्सं जहण्णमजहण्णगं ति पुधं । गो. क. ८९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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