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१, ९–१, २८. ] चूलियाए पगडिसमुत्तिणे नाम• उत्तरपयडीओ
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उपेत्य घात उपघातः आत्मघात इत्यर्थः । जं कम्मं जीवपीडाहेउअवयवे कुणदि, जीवपीडा हेदुदव्वाणि वा विसासि-पासादीणि जीवस्स ढोएदि तं उवघादं णाम । के जीवपीडाकार्यवयवा इति चेन्महाशृङ्ग - लम्बस्तन- तुंदोदरादयः । जदि उवघादणामकम्मं जीवस्स ण होज्ज, तो सरीरादो वाद- पित्त-भदूसिदादो tara पीडा होज्ज । ण च एवं, अणुवलंभादो । जीवस्स दुक्खुप्पायणे असादावेदणीस वावारो चे, होदु तस्स तत्थ वावारो, किंतु उवधादकम्मं पि तस्स सहकारिकारणं होदि, तदुदयणिमित्तपोग्गलदव्त्रसंपादणादो। परेषां घातः परघातः । जस्स कम्मस्स उदएण परघादहेदू सरीरे पोग्गला णिष्फज्जैति तं कम्मं परघादं णाम । तं जहासप्पदाढा विसं विच्छियपुंछे परदुःखहे उपोग्गलोचओ, सीह-वग्घच्छबलादिसु णह-दंता, सिंगिवच्छणाहीधत्तूरादओ च परघा दुप्पायया । )
स्वयं प्राप्त होनेवाले घातको उपघात अर्थात् आत्मघात कहते हैं । जो कर्म अवयवोंको जीवकी पीड़ाका कारण बना देता है, अथवा विष, खड्ग, पाश आदि जीवपीड़ाके कारणस्वरूप द्रव्योंको जीवके लिए ढोता है, अर्थात् लाकर संयुक्त करता है, वह उपघात नामकर्म कहलाता है ।
शंका - जीवको पीड़ा करनेवाले अवयव कौन कौन हैं ?
समाधान - महाभुंग ( बारह सिंगाके समान बड़े सींग ), लम्बे स्तन, विशाल तोंदवाला पेट आदि जीवको पीड़ा करनेवाले अवयव हैं ।
यदि उपघात नामकर्म जीवके न हो, तो वात, पित्त और कफसे दूषित शरीरसे जीवके पीड़ा नहीं होना चाहिए। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, वैसा पाया नहीं जाता है । शंका- जीवके दुःख उत्पन्न करने में तो असातावेदनीयकर्मका व्यापार होता है, (फिर यहाँ उपघातकर्मको जीव-पीड़ाका कारण कैसे बताया जा रहा है ) ?
समाधान - जीवके दुःख उत्पन्न करनेमें असातावेदनीयकर्मका व्यापार रहा आवे, किन्तु उपघातकर्म भी उस असातावेदनीयका सहकारी कारण होता है, क्योंकि, उसके उदय के निमित्तसे दुःखकर पुल द्रव्यका सम्पादन ( समागम ) होता है ।
पर जीवोंके घातको परघात कहते हैं । जिस कर्मके उदयसे शरीर में परको घात करनेके कारणभूत पुद्गल निष्पन्न होते हैं, वह परघात नामकर्म कहलाता है । जैसे सांपकी दाढ़ोंमें विष, विच्छूकी पूंछमें पर- दुःखके कारणभूत पुद्गलोंका संचय, सिंह, व्याघ्र और छवल ( शबल-चीता ) आदि में ( तीक्ष्ण ) नख और दन्त, तथा सिंगी, वत्स्यनाभि और धत्तूरा आदि विषैले वृक्ष परको दुःख उत्पन्न करनेवाले हैं ।
१ यस्योदयात्स्वयंकृतोद्बन्धनमरुत्प्रपतनादिनिमित्त उपघातो भवति तदुपघातनाम । स. सि.; त. रा. वा. : त. लो. वा. ८, ११. २ प्रतिषु ' दोएदि ' इति पाठः ।
३ यन्निमित्तः परशस्त्रादेर्व्याघातस्तत्परघातनाम | स. सि.; त. रा. वा; त. लो. वा. ८, ११.
४ प्रतिषु ' दादासु ' इति पाठः ।
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