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१, ९-१, २८.] चूलियाए पगडिसमुक्त्तिणे णाम-उत्तरययडीओ [५३ परोप्परं बंधो कीरइ तेसिं पोग्गलक्खंधाणं सरीरबंधणसण्णा', कारणे कज्जुवयारादो, कत्तारणिदेसादो वा । जइ सरीरबंधणणामकम्मं जीवस्स ण होज्ज, तो वालुवाकयपुरिससरीरं व सरीरं होज्ज, परमाणूणमण्णोण्णे बंधाभावा । जेहि कम्मक्खंधेहि उदयं पत्तेहि बंधणणामकम्मोदएण बंधमागयाणं सरीरपोग्गलक्खंधाणं महत्तं कीरदे तेसिं सरीरसंघादसण्णा' । जदि सरीरसंघादणामकम्मं जीवस्स ण होज्ज, तो तिलमोअओ व्व अबुट्ठसरीरो जीवो होज्ज । ण चेवं, तहाणुवलंभा । जेसिं कम्मक्खंधाणमुदएण जाइकम्मोदयपरतंतेण सरीरस्स संठाणं कीरदे तं सरीरसंठाणं णाम । सरीरसंठाणणामकम्मा. भावे जीवसरीरमसंठाणं होज्ज । होदु चे ण, संठाणाभावे सरीरस्साभावप्पसंगादो । ण च णिरुहेउ सरीरसंठाणं, णिरुहेउअस्स संठाणस्स जाईसु णियमविरोहा । ण च उदय प्राप्त पुद्गलोंके साथ परस्पर बंध किया जाता है उन पुद्गल स्कन्धोंकी 'शरीरबंधन' यह संज्ञा कारणमें कार्यके उपचारसे, अथवा कर्तृ-निर्देशसे है। यदि शरीरबंधननामकर्म जीवके न हो, तो वालुका द्वारा बनाये गये पुरुष-शरीर (पुतला) के समान जीवका शरीर होगा, क्योंकि, परमाणुओंका परस्परमें बंध नहीं है । उदयको प्राप्त जिन कर्मस्कधोंके द्वारा बंधननामकर्मके उदयसे बंधके लिये आये हुये शरीर-सम्बन्धी पुद्गलस्कन्धोंका मृष्टत्व, अर्थात् छिद्र-रहित संश्लेष, किया जाता है, उन पुद्गल-स्कंधोंकी 'शरीरसंघात' यह संज्ञा है। यदि शरीरसंघातनामकर्म जीवके न हो, तो तिलके मोदकके समान अपुष्ट शरीरवाला जीव हो जावे। किन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, तिलके मोदकके समान संश्लेष-रहित परमाणुओंवाला शरीर पाया नहीं जाता । जातिनामकर्मके उदयसे परतन्त्र जिन कर्म स्कंधोंके उदयसे शरीरका आकार बनता है वह शरीरसंस्थाननामकर्म है। शरीरसंस्थाननामकर्मके अभावमें जीवका शरीर आकृतिरहित हो जायगा।
__शंका -शरीरसंस्थाननामकर्मके अभाव माननेपर यदि जीवका शरीर आकृतिरहित होता है, तो होने दो ?
समाधान - नहीं, क्योंकि, संस्थानके अभाव माननेपर शरीरके अभावका प्रसंग आता है।
और शरीरसंस्थान निर्हेतुक माना नहीं जा सकता, क्योंकि, द्वीन्द्रिय आदि जातियों में निर्हेतुक संस्थानके नियमका विरोध है । तथा जातियोंमें संस्थानका नियम
१ शरीरनामकर्मोदयवशानुपात्तानां पुद्गलानामन्योन्यप्रदेशसंश्लेषणं यतो भवति तद्धन्धमनाम । स. सि. त. रा. वा. त. श्लो. वा. ८, ११.
२ यदुदयादीदारिकादिशरीराणां विवरविरहितान्योऽम्यप्रदेशानुप्रवेशेन एकत्वापादनं भवति तत्संघातनाम । स. सि. ८, ११. अविवरभावेनैकत्वकरणं संघातनामकर्म । त. रा. वा.; त. लो. वा. ८, ११.
३ यदुदयादीदारिकादिशरीराकृतिनिचिर्भवति तत्संस्थाननाम । स सि.; त.रा.वा.त. श्लो.वा.८, ११.
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