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प्राक्-कथन
(३) श्री. पं. देवकीनन्दनजी सिद्धान्तशास्त्रीने विशेषरूपसे गर्मीके विराम-कालमें अवलोकन कर संशोधन भेजनेकी कृपा की है, जिनका उपयोग शुद्धिपत्रमें किया गया है। कन्नडप्रशस्तिका संशोधन पूर्ववत् डा. ए. एन्. उपाध्येजीने करके भेजा है । प्रति-मिलानमें पं. बालचन्द्रजी शास्त्रीका सहयोग रहा है । इस प्रकार सब सहयोगियोंका साहाय्य पूर्ववत् उपलब्ध है, जिसके लिये मैं उन सबका अनुगृहीत हूं।
इस भागकी प्रस्तावनामें पूर्वप्रतिज्ञानुसार डा. अवधेशनारायणजीके गणितसम्बन्धी लेखका अविकल हिन्दी अनुवाद दिया जा रहा है। इसका अनुवाद मेरे पुत्र चिरंजीव प्रफुल्लकुमार बी. ए. ने किया था। उसे मैंने अपने सहयोगी प्रोफेसर काशीदत्तजी पांडे के साथ मिलाया और फिर डा. अवधेशनारायणजीके पास भेजकर संशोधित करा लिया है। इसके लिये इन सज्जनोंका मुझपर आभार है । चौथे भागके गणितपर भी एक लेख डा. अवधेशनारायणजी लिख रहे हैं। खेद है कि अनेक कौटुंबिक विपत्तियों और चिन्ताओंके कारण वे उस लेखको इस भागमें देनेके लिये तैयार नहीं कर पाये । अतः उसके लिये पाठकोंको अगले भागकी प्रतीक्षा करना चाहिये।
आजकल कागज, जिल्द आदिका सामान व मुद्रणादि सामग्रीके मिलनेमें असाधारण कठिनाईका अनुभव हो रहा है। कीमतें बेहद बढ़ी हुई हैं। तथापि हमारे निरन्तर सहायक और अद्वितीय साहित्यसेवी पं. नाथूरामजी प्रेमीके प्रयत्नसे हमें कोई कठिनाईका अनुभव नहीं हुआ। इस वर्ष उनके ऊपर पुत्रवियोगका जो कठोर वज्रपात हुआ है उससे हम और हमारी संस्थाके समस्त ट्रस्टी व कार्यकर्त्तागण अत्यन्त दुखी हैं। ऐसी अपूर्व कठिनाइयोंके होते हुए भी हम अपनी व्यवस्था और कार्यप्रगति पूर्ववत् कायम रखनेमें सफल हुए हैं, यह हम इस कार्यके पुण्यका फल ही समझते हैं। आगे जब जैसा हो, कहा नहीं जा सकता।
किंग एडवर्ड कॉलेज )
अमरावती २०-७-४२
हीरालाल जैन
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