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________________ २६२ शुद्धिपत्र पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध १८२ २३ चाहिए। चाहिए। (किन्तु सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें मरण नहीं होता है।) १९१ १० और अधस्तन चार पृथिवियों- . और सातवीं पृथिवीसम्बन्धी अधस्तन चार सम्बन्धी चार ___ ७ मारणंतिय (-उववाद-) मारणंतियपरिणदेहि परिणदेहि २२ मारणान्तिकसमुद्धात और उप- मारणान्तिकसमुद्धात-पदपरिणत पादपदपरिणत ___१३ वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंका असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका २७३. २१ नारकियोंसे............सासादन- नारकियोंमेंसे तिर्यंचों और मनुष्योंमें मारसम्यग्दृष्टि णान्तिकसमुद्धात करनेवाले स्त्री और पुरुष वेदी सासादनसम्यग्दृष्टि ३६९ १५ लब्ध्यपर्याप्तकोंमें अपर्याप्तकोंमें १६ लब्ध्यपर्याप्त अपर्याप्त १७ अर्थात् उनमें पुन: वापिस अर्थात् अपने विवक्षित गुणस्थानको छोड़कर आनेस, नवीन गुणस्थानमें जानेसे, ४१७ ३ -परियट्टेसुप्पण्णेसु -परियझेसु पुण्णेसु १५ शेष रहने पर पूर्ण होने पर २२ उदयमें आये हैं उपार्जित किये हैं ४४५ ५ -णिरयगदीएण -णिरयगदीए ण ६ मणुसगदीएण मणुसगदीए ण ७ तिरिक्खगईएण तिरिक्खगईए ण ८ देवगदीएण देवगदीए ण १९, २०, २२, २४ उत्पन्न नहीं उत्पन्न ४६४ २४ अन्तर्मुहूर्तसे........काल अन्तर्मुहूर्तसे अधिक अढाई सागरोपम काल ६५ अढ़ाई सागरोपमकालके आदि विवक्षित पर्यायके आदि ४६८ १२ वर्धमान शंका-वर्धमान १७ शंका-तेज तेज १७७ १७ सादि-सान्त सादि ४१० ४२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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