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________________ ३३०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ८, २८२० मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा ॥ २८२ ॥ को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो, सिद्धेहि वि अणंतगुणो, अणंताणि सव्वजीवरासिपढमवग्गमूलाणि । कुदो ? साभावियादो । असंजदसम्मादिहिट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥२८३॥ कुदो ? अंतोमुहुत्तसंचयादो। खइयसम्मादिट्टी असंखेज्जगुणा ॥ २८४ ॥ कुदो ? सागरोवमसंचयादो। को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। कुदो ? साभावियादो। वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ २८५॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । कुदो ? साभावियादो । एवं संजममग्गणा समत्ता। असंयतोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं ॥२८२ ॥ गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणित और सिद्धोंसे भी अनन्तगुणित राशि गुणकार है, जो सर्व जीवराशिके अनन्त प्रथम वर्गमूलप्रमाण है, क्योंकि, यह स्वाभाविक है। __ असंयतोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ २८३ ॥ क्योंकि, उनका संचयकाल अन्तर्मुहूर्त है। असंयतोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ २८४ ॥ क्योंकि, उनका संचयकाल सागरोपम है । गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है, क्योंकि, यह स्वाभाविक है। असंयतोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ २८५ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है, क्योंकि, यह स्वाभाविक है। इस प्रकार संयममार्गणा समाप्त हुई। १ मिथ्यादृष्टयोऽनन्तगुणाः । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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