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________________ १, ८, ९३.] अप्पाबहुगाणुगमे देव-अप्पाबहुगपरूवणं [२८३ दिविट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी । खइयसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा । वेदगसमादिट्ठी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? सव्वत्थ आवलियाए असंखेज्जदिभागो त्ति । सेसं सुगमं । आणद जाव गवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु सव्वत्थोवा सासणसम्मादिट्टी ॥ ९०॥ सुगममेदं सुत्तं । सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ९१ ॥ एदं पि सुगमं । मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ९२ ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। कधमेदं णव्वदे ? दव्वाणिओगद्दारसुत्तादो। असंजदसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ९३ ॥ कहे गये कल्पोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि देव सबसे कम हैं । इनसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि देव असंख्यातगुणित हैं। इनसे वेदकसम्यग्दृष्टि देव असंख्यातगुणित हैं। गुणकार क्या है ? सर्वत्र आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। शेष सूत्रार्थ सुगम है। आनत-प्राणत कल्पसे लेकर नवग्रैवेयक विमानों तक विमानवासी देवोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥ ९॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त विमानोंमें सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि देव संख्यातगुणित हैं ॥ ९१॥ यह सूत्र भी सुगम है। उक्त विमानोंमें सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि देव असंख्यातगुणित हैं ॥ ९२ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-द्रव्यानुयोगद्वारसूत्रसे जाना जाता है कि उक्त कल्पोंमें मिथ्यादृष्टि देवोंका गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है। उक्त विमानोंमें मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि देव संख्यातगुणित हैं ॥९३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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