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२४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८,५५. खवा संखेज्जगुणा ॥ ५५॥ कुदो ? अदुत्तरसदमेत्तत्तादो। खीणकसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥ ५६ ॥ सुगममेदं ।
सजोगिकेवली अजोगिकेवली पवेसणेण दो वि तुल्ला तत्तिया चेय ॥ ५७॥
कुदो ? खीणकसायपज्जाएण परिणदाणं चेय उत्तरगुणट्ठाणुवक्कमुवलंभा । सजोगिकेवली अद्धं पडुच्च संखेज्जगुणा ॥ ५८ ॥
मणुस-मणुसपज्जत्तएसु ओघसजोगिरासिं ठविय हेडिमरासिणा ओवट्टिय गुणगारो उप्पादेदव्यो । मणुसिणीसु पुण तप्पाओग्गसंखेज्जसजोगिजीवे हविय अदुत्तरसदं मुच्चा तप्पाओग्गसंखेज्जखीणकसाएहि ओवट्टिय गुणगारो उप्पादेदव्यो ।
तीनों प्रकारके मनुष्योंमें उपशान्तकषायवीतरागछमस्थोंसे क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ५५ ॥
। क्योंकि, क्षपकसम्बन्धी एक गुणस्थानमें एक साथ प्रवेश करनेवाले जीवोंका प्रमाण एक सौ आठ है।
तीनों प्रकारके मनुष्योंमें क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥५६॥
यह सूत्र सुगम है।
तीनों प्रकारके मनुष्योंमें सयोगिकेवली और अयोगिकेवली, ये दोनों भी प्रवेशसे तुल्य और पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ ५७॥
क्योंकि, क्षीणकषायरूप पर्यायसे परिणत जीवोंका ही आगेके गुणस्थानोंमें उपक्रमण (गमन) पाया जाता है।
तीनों प्रकारके मनुष्योंमें सयोगिकेवली संचयकालकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥५८॥
__सामान्य मनुष्य और पर्याप्त मनुष्योमेसे ओघ सयोगिकेवलीराशिको स्थापित के और उसे अधस्तनराशिसे भाजित करके गुणकार उत्पन्न करना चाहिए। किन्त मनुष्यनियोंमें उनके योग्य संख्यात सयोगिकेवली जीवोंको स्थापित करके एक सौ आठ संख्याको छोड़कर उनके योग्य संख्यात क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थोंके प्रमाणसे भाजित करके गुणकार उत्पन्न करना चाहिए ।
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