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२६.] छक्खंडागमें जीवट्ठाणं
[ १, ८, ३३. गुणहीणओघखइयसम्मादिट्ठीणं असंखेज्जदिभागमेत्तादो । ण वासपुधत्तंतरसुत्रेण सह विरोहो, सोहम्मीसाणकप्पं मोत्तूण अण्णत्थ द्विदखइयसम्मादिट्ठीणं वासपुधत्तस्स विउलत्तवाइणो' गहणादो । तं तहा घेप्पदि त्ति कुदो णव्वदे ? ओघुवसमसम्मादिट्ठीहितो ओघखइयसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा त्ति अप्पाबहुअसुत्तादो ।
वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३३ ॥
कुदो ? खइयसम्मत्तादो खओवसमियस्स वेदगसम्मत्तस्स सुलहत्तुवलंभा । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । कधमेदं णव्वदे ? आइरियपरंपरागदुवदेसादो।
एवं पढमाए पुढवीए णेरड्या ॥ ३४ ॥
जहा सामण्णणेरइयाणमप्पाबहुअं परूविदं, तहा पढमपुढवीणेरइयाणमप्पाबहुअंपरूवेदव्वं, ओघणेरइयअप्पाबहुआलावादो ढमपुढवीणेरइयाणमप्पाबहुआलावस्स भेदाभावा । जीव असंख्यातवें भाग ही होते हैं। इस कथनका वर्षपृथक्त्व अन्तर बतानेवाले सूत्रके साथ विरोध भी नहीं आता है, क्योंकि, सौधर्म और ऐशानकल्पको छोड़कर अन्यत्र स्थित क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके अन्तरमें कहे गये वर्षपृथक्त्वके 'पृथक्त्व' शब्दको वैपुल्यवाची ग्रहण किया गया है।
शंका-यहां पर पृथक्त्वका अर्थ वैपुल्यवाची ग्रहण किया गया है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- 'ओघ उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे ओघ क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ' इस अल्पबहुत्वके प्रतिपादक सूत्रसे जाना जाता है।
नारकियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं ॥ ३३॥
क्योंकि, क्षायिकसम्यक्त्वकी अपेक्षा क्षायोपशमिक वेदकसम्यक्त्वकी प्राप्ति सुलभ है । गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है।
शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-आचार्य परम्परासे आये हुए उपदेशके द्वारा जाना जाता है। इसी प्रकार प्रथम पृथिवीमें नारकियोंका अल्पबहुत्व है ॥ ३४ ॥
जिस प्रकार सामान्य नारकियोंका अल्पवहुत्व कहा है, उसी प्रकार पहली पृथिवीके नारकियोंका अल्पबहुत्व कहना चाहिए, क्योंकि, सामान्य नारकियोंके अल्पबहुत्वके कथनसे पहली पृथिवीके नारकियोंके अल्पबहुत्वके कथनमें कोई भेद नहीं है। किन्तु
___ १ पुहुत्सद्दो बहुत्तवाई । क. प. चूर्णि.
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