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________________ aohitiatha तस्स सिरि-भगवंत-पुप्फदंत-भूदबलि-पणीदो छक्खंडागमो सिरि-वीरसेणाइरिय-विरइय धवला-टीका-समण्णिदो पढमखंडे जीवट्ठाणे अप्पाबहुगाणुगमो केवलणाणुजोइयलोयालोए जिणे णमंसित्ता । अप्पबहुआणिओअं जहोवएस परूवेमो ॥ अप्पाबहुआणुगमेण दुविहो णिदेसो, ओघेण आदेसेण यं ॥१॥ तत्थ णाम-ढवणा-दव्व-भावभेएण अप्पाबहुअं चउविहं । अप्पाबहुअसद्दो णामप्पाबहुअं। एदम्हादो एदस्स बहुत्तमप्पत्तं वा एदमिदि एयत्तज्झारोवेण दृविदं ठवणप्पाबहुगं। दव्वप्पाबहुअं दुविहं आगम-णोआगमभेएण। अप्पाबहुअपाहुडजाणओ अणुवजुत्तो केवलज्ञानके द्वारा लोक और अलोकको प्रकाशित करनेवाले श्री जिनेन्द्र देवोंको नमस्कार करके जिस प्रकारसे उपदेश प्राप्त हुआ है, उसके अनुसार अल्पबहुत्व अनुयोगद्वारका प्ररूपण करते हैं । अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है, ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ॥१॥ नाम, स्थापना द्रव्य और भावके भेदसे अल्पबहुत्व चार प्रकारका है। उनमेंसे अल्पबहुत्व शब्द नामअल्पबहुत्व है। यह इससे बहुत है, अथवा यह इससे अल्प है, इस प्रकार एकत्वके अध्यारोपसे स्थापना करना स्थापनाअल्पबहुत्व है। द्रव्यअल्पबहुत्व आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है। जो अल्पबहुत्व-विषयक प्राभृतको जाननेवाला है, परंतु वर्तमानमें उसके उपयोगसे रहित है उसे आगमद्रव्य अल्पबहुत्व १ अल्पबहुत्वमुपवर्ण्यते । तत् द्विविधं सामान्येन विशेषेण च । स. सि. १,८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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