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२३८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ७, ९१. आहाराणुवादेण आहारएसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति ओघं ॥ ९१ ॥
सुगममेदं । अणाहाराणं कम्मइयभंगों ॥ ९२ ॥ एदं पि सुगमं । कम्मइयादो विसेसपदुप्पायण उत्तरसुत्तं भणदि
णवरि विसेसो, अजोगिकेवलि त्ति को भावो, खइओ भावो ॥ ९३॥ सुगममेदं।
( एवं आहारमग्गणा समत्ता) एवं भावाणुगमो त्ति समत्तमणिओगद्दारं ।
आहारमार्गणाके अनुवादसे आहारकोंमें मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगिकेवली तक भाव ओघके समान हैं ।। ९१ ॥
यह सूत्र सुगम है। अनाहारक जीवोंके भाव कार्मणकाययोगियों के समान हैं ॥ ९२ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। कार्मणकाययोगियोंमें विशेषता प्रतिपादन करनेके लिए उत्तर सूत्र कहते हैं
किन्तु विशेषता यह है कि कार्मणकाययोगी अयोगिकेवली यह कौनसा भाव है ? क्षायिक भाव है ॥ ९३ ॥ यह सूत्र सुगम है।
(इस प्रकार आहारमार्गणा समाप्त हुई।) इस प्रकार भावानुगमनामक अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
१ आहारानुवादेन आहारकाणांxx सामाभ्यवत् । स. सि. १,८. २xx अनाहारकाणां च सामान्यवत् । स. सि. १,८. ३ भावः परिसमाप्तः । स. सि. १, ८.
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