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________________ १, ७, ४१.] भावाणुगमे इस्थि-पुरिस-णउसयवेदिभाव-परूवणं [२२१ समिओ । अधवा एक्कारसकम्माणमुदयस्सेव खओवसमसण्णा । कुदो ? चारित्तघायणसत्तीए अभावस्सेव तव्ववएसादो । तेण उप्पण्ण इदि खओवसमिओ पमादाणुविद्धसंजमो । कम्मइयकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी सासणसम्मादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी सजोगिकेवली ओघं ॥ ४० ॥ ___ कुदो ? मिच्छादिट्ठीणमोदइएण, सासणाणं पारिणामिएण, कम्मइयकायजोगिअसंजदसम्मादिट्ठीणं ओवसमिय-खइय-खओवसमियभावेहि , सजोगिकेवलीणं खइएण भावण ओघम्मि गदगुणट्ठाणेहि साधम्मुवलंभा । ___ एवं जोगमग्गणा समत्ता । वेदाणुवादेण इत्थिवेद-पुरिसवेद-णउंसयवेदएसु मिच्छादिट्टिप्पहुडि जाव अणियट्टि त्ति ओघं ॥ ४१ ॥ सुगममेदं, एदस्सट्टपरूवणाए विणा वि अत्थोवलद्धीदो । संयम क्षायोपशमिक कहलता है। अथवा, चारित्रमोहसम्बन्धी उक्त ग्यारह कर्मप्रकृतियोंके उदयकी ही क्षयोपशमसंज्ञा है, क्योंकि, चारित्रके घातनेकी शक्तिके अभावकी ही क्षयोपशमसंज्ञा है । इस प्रकारके क्षयोपशमसे उत्पन्न होनेवाला प्रमादयुक्त संयम क्षायोपशमिक है। कार्मणकाययोगियों में मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगिकेवली ये भाव ओघके समान हैं ॥ ४० ॥ क्योंकि, कार्मणकाययोगी मिथ्यादृष्टियोंके औदयिकभावसे, सासादनसम्यग्दृष्टियोंके पारिणामिकभावसे, असंयतसम्यग्दृष्टियोंके औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक भावोंकी अपेक्षा, तथा सयोगिकेवलियोंके क्षायिकभावोंकी अपेक्षा ओघमें कहे गये गुणस्थानोंके भावोंके साथ समानता पाई जाती है । इस प्रकार योगमार्गणा समाप्त हुई । वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदियोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक भाव ओघके समान हैं ॥४१॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, इसके अर्थकी प्ररूपणाके विना भी अर्थका ज्ञान हो जाता है। १ प्रतिषु 'ओघं पि' इति पाठः। २ वेदानुवादेन स्त्रीपुन्नपुंसकवेदानां xx सामान्यवत् । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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