________________
२१४]
___ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ७, २३. देवगदीए देवेसु मिच्छादिहिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठि ति ओघं ॥ २३॥
कुदो ? मिच्छादिट्ठीणमोदएण, सासणाणं पारिणामिएण, सम्मामिच्छादिट्ठीणं खओवसमिएण, असंजदसम्मादिट्ठीणं ओवसमिय-खइय-खओवसमिएहि भावेहि ओघमिच्छादिद्वि-सासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीहि साधम्मुवलंभा ।
भवणवासिय-वाणवेंतर-जोदिसियदेवा देवीओ सोधम्मीसाणकप्पवासियदेवीओ च मिच्छादिट्ठी सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी ओघं ॥ २४ ॥
कुदो ? एदेसि सुत्तुत्तगुणट्ठाणाणं सधपयारेण ओघादो भेदाभावा ।
असंजदसम्मादिहि त्ति को भावो, उवसमिओ वा खओवसमिओ वा भावो ॥२५॥
कुदो ? तत्थ उवसम-वेदगसम्मत्ताणं दोहं चेय संभवादो । खइओ भावो एत्थ
देवगतिमें देवोंमें मिथ्यादृष्टिसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि तक भाव ओघके समान हैं ॥२३॥
क्योंकि, देवमिथ्यादृष्टियोंकी औदयिकभावसे, देवसासादनसम्यग्दृष्टियोंकी पारिणामिकभावसे, देवसम्यग्मिथ्यादृष्टियोंकी क्षायोपशमिकभावसे और देवअसंयतसम्यग्दृष्टियोंकी औपशमिक, क्षायिक तथा क्षायोपशमिक भावोंकी अपेक्षा ओघ मिथ्यारष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके भावोंके साथ समानता पाई जाती है।
भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिष्क देव एवं देवियां, तथा सौधर्म ईशान कल्पवासी देवियां, इनके मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि ये भाव ओघके समान हैं ॥२४॥ __ क्योंकि, इन सूत्रोक्त गुणस्थानोंका सर्व प्रकार ओघसे कोई भेद नहीं है।
असंयतसम्यग्दृष्टि उक्त देव और देवियोंके कौनसा भाव है ? औपशमिक भाव भी है और क्षायोपशमिक भाव भी है ॥ २५ ॥
क्योंकि, उनमें उपशमसम्यक्त्व और क्षायोपशमिकसम्यक्त्व, इन दोनोंका ही पाया जाना सम्भव है।
१देवगतौ देवानां मिथ्यादृष्टयाधसंयतसम्यग्दृष्टयान्तानां सामान्यवत् । स. सि. १,८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org