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________________ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, ७, १. उवसमिओ भावो ठाणदो दुविहो । वियप्पदो अट्ठविहो । भणिदं च सम्मत्तं चारित्तं दो चेय द्वाणाइमुवसमे होंति । अट्ठवियप्पा य तहा कोहाईया मुणेदव्वा ॥ ७ ॥ ओवसमियस्स भावस्स सम्मत्तं चारित्तं चेदि दोण्णि द्वाणाणि । कुदो ? उवसमसम्मत्तं उवसमचारित्तमिदि दोहं चे उवलंभा । उवसमसम्मत्तमेयविहं । ओवसमिय चारित्तं सत्तविहं । तं जहा- णqसयवेदुवसामणद्धाए एयं चारित्तं, इत्थिवेदुवसामणद्धाए विदियं, पुरिस-छण्णोकसायउवसामणद्धाए तदियं, कोहुवसामणद्धाए चउत्थं, माणुवसामणद्धाए पंचमं, माओवसामणद्धाए छटुं, लोहुत्रसामणद्धाए सत्तममोवसमियं चारित्तं । भिण्णकज्जलिंगेण कारणभेदसिद्धीदो उवसमियं चारित्तं सत्तविहं उत्तं । अण्णहा पुण अणेयपयारं, समयं पडि उवसमसेडिम्हि पुध पुध असंखेज्जगुणसेडिणिज्जराणिमित्तपरिणामुवलंभा । खइओ भावो ठाणदो पंचविहो । वियप्पादो णवविहो । भणिदं च औपशमिकभावस्थानकी अपेक्षा दो प्रकार और विकल्पकी अपेक्षा आठ प्रकारका है । कहा भी है औपशमिकभावमें सम्यक्त्व और चारित्र ये दो ही स्थान होते हैं । तथा औपशमिकभावके विकल्प आठ होते हैं, जो कि क्रोधादि कषायोंके उपशमनरूप जानना चाहिए ॥७॥ __ औपशमिकभावके सम्यक्त्व और चारित्र, ये दो ही स्थान होते हैं, क्योंकि, औपशमिकसम्यक्त्व और औपशमिकचारित्र ये दो ही भाव पाये जाते हैं । इनमेंसे औपशमिकसम्यक्त्व एक प्रकारका है और औपशमिकचारित्र सात प्रकारका है । जैसे- नपुंसकवेदके उपशमनकालमें एक चारित्र, स्त्रीवेदके उपशमनकालमें दूसरा चारित्र, पुरुषवेद और छह नोकषायोंके उपशमनकालमें तीसरा चारित्र, क्रोधसंज्वलनमें उपशमनकालमें चौथा चारित्र, मानसंज्वलनके उपशमनकालमें पांचवां चारित्र, मायासंज्वलनके उपशमनकालमें छठा चारित्र और लोभसंज्वलनके उपशमनकालमें सातवां औपशमिकचारित्र होता है। भिन्न-भिन्न कार्योंके लिंगसे कारणोंमें भी भेदकीसिद्धि होती है, इसलिए औपशमिकचारित्र सात प्रकारका कहा है। अन्यथा, अर्थात् उक्त प्रकारकी विवक्षा न की जाय तो, वह अनेक प्रकारका है, क्योंकि, प्रति समय उपशमश्रेणीमें पृथक् पृथक् असंख्यातगुणश्रेणी निर्जराके निमित्तभूत परिणाम पाये जाते हैं। क्षायिकभाव स्थानकी अपेक्षा पांच प्रकारका है, और विकल्पकी अपेक्षा नौ प्रकारका है। कहा भी है १ सम्यक्त्वचारित्रे । त. सू. २, ३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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