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१, ६, ३५३.] अंतराणुगमे वेदगसम्मादिट्टि-अंतरपरूवणं
[१६३ तं जहा- एक्को मिच्छादिट्ठी वेदगसम्मत्तं संजमासंजमं च जुगवं पडिवण्णो । अंतोमुहुत्तमच्छिय संजमं पडिवण्णो अंतरिदो । जत्तियं कालं संजमासंजमेण संजमेण च अच्छिदो तेत्तियमेत्तेणूणतेत्तीससागरोवमाउट्ठिदिदेवेसु उववण्णो । तदो चुदो मणुसेसु उववण्णो । तत्थ जत्तियं कालं असंजमेण संजमेण वा अच्छदि, पुणो सग्गादो मणुसगदिमागंतूण जं वासपुधत्तादिकालमच्छिस्सदि तेहि दोहि वि कालेहि ऊणतेत्तीससागरोवमआउहिदिएसु देवेसु उववण्णो । तदो चुदो मणुसो जादो । वे अंतोमुहुत्तावसेसे वेदगसम्मत्तकाले परिणामपच्चएण संजमासंजमं पडिवण्णो । लद्धमंतरं । तदो अंतोमुहुत्तेण दसणमोहणीयं खविय खइयसम्मादिट्ठी जादो । आदिल्लमेक्कं अंतिल्ला दुवे अंतोमुहुत्ता, एदेहि तीहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणाणि छावट्ठिसागरोवमाणि संजदासंजदुक्कस्संतरं ।
पमत्त-अप्पमत्तसंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ ३५३ ॥
सुगममेदं ।
जैसे- एक मिथ्यादृष्टि जीव वेदकसम्यक्त्व और संयमासंयमको एक साथ प्राप्त हुआ । अन्तर्मुहूर्त रह कर पुनः संयमको प्राप्त हो अन्तरको प्राप्त हुआ। पुनः मरणकर जितने काल संयमासंयम और संयमके साथ रहा था उतने ही कालसे कम तेतीस सागरोपमकी आयुस्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ। वहांसे च्युत हो मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। वहां पर जितने काल असंयमके अथवा संयमके साथ रहा है और स्वर्गसे मनुष्यगतिमें आकर जितने वर्षपृथक्त्वादि काल असंयम अथवा संयमके साथ रहेगा उन दोनों ही कालोसे कम तेतीस सागरोपमकी आयुस्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ। वहांसे च्युत हो मनुष्य हुआ। इस प्रकार वेदकसम्यक्त्वके कालमें दो अन्तर्मुहूर्त अवशिष्ट रह जाने पर परिणामोंके निमित्तसे संयमासंयमको प्राप्त हुआ। तब अन्तर लब्ध हुआ। पुनः अन्तर्मुहूर्तसे दर्शनमोहनीयका क्षपणकर क्षायिकसम्यग्दृष्टि होगया। इस प्रकार आदिका एक और अन्तके दो अन्तर्मुहूर्त, इन तीन अन्तर्मुहूतासे कम छयासठ सागरोपमकाल वेदकसम्यग्दृष्टि संयतासंयतका उत्कृष्ट अन्तर है।
वेदकसम्यग्दृष्टि प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ ३५३ ॥
यह सूत्र सुगम है।
१ मप्रतौ 'दुमे' इति पाठः। २ प्रमचाप्रमत्सयतयोनानाजीवापेक्षया नास्त्यन्तरम् । स. सि. १, ..
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