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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, ३१९. एदस्स जहण्णभंगो। णवरि सबचिरेण कालेण उवसमसेढीदो ओदिण्णस्स वत्तव्यं ।
तिण्हमुवसामगाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ३१९ ॥
सुगममेदं । उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ ३२०॥ एदं पि सुगमं । एगजीवं पडुच्च जहण्णण अंतोमुहत्तं ॥ ३२१ ॥ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३२२ ॥
एदेसिं दोण्हं सुत्ताणमत्थे भण्णमाणे खिप्प-चिरकालेहि उवसमसेटिं चढिय ओदिण्णाणं' जहण्णुक्कस्सकाला वत्तव्या ।
इसका अन्तर भी जघन्य अन्तरप्ररूपणाके समान है। विशेषता यह है कि सर्वदीर्घकालात्मक अन्तर्मुहूर्त द्वारा उपशमश्रेणीसे उतरे हुए जीवके उत्कृष्ट अन्तर कहना चाहिए।
शुक्ललेश्यावाले अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानवर्ती तीनों उपशामक जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है ॥ ३१९ ॥
यह सूत्र सुगम है। शुक्ललेश्यावाले तीनों उपशामकोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है ॥ ३२० ॥ यह सूत्र भी सुगम है। उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३२१ ॥ उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३२२॥
इन दोनों सूत्रोंका अर्थ कहने पर क्षिप्र (लघु) कालसे उपशमश्रेणी पर चढ़कर उतरे हुए जीवोंके जघन्य अन्तर कहना चाहिए, तथा चिर (दीर्घ) कालसे उपशमश्रेणी पर चढ़कर उतरे हुए जीवोंके उत्कृष्ट अन्तर कहना चाहिए ।
१ त्रयाणामुपशमकानां नानाजीवापेक्षया सामान्यवत् । स. सि. १, ८. २ एकजीवं प्रति जघन्यमुत्कृष्टं चान्तर्मुहूर्तः। स. सि, १, ८. ३ प्रतिषु 'ओधिणाणं' इति पाठः।
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