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छक्खडागमे जीवद्वाणं
एगजीवं पहुच जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ ७२ ॥ सुगममेदं सुत्तं, ओहि उत्तत्तादो । उक्कस्सेण पुव्वकोडिपुधतं ॥ ७३ ॥
मस्साणं ताव उच्चदे- एक्को अट्ठावीस संतकम्मिओ मणुसेसु उववण्णो गन्भादिअवस्सेहि सम्मत्तं संजमं च समगं पडिवण्णो (१) । पमत्तापमत्तसंजदट्ठाणे सादासादबंध परावत्तिसहस्सं काढूण (२) दंसणमोहणीयमुवसामिय (३) उवसमसेढीपाओग्गअप्पमत्तो जादो ( ४ ) । अपुव्वो ( ५ ) अणियट्टी ( ६ ) सुहुमो (७) उवसंतो ( ८ ) सुमो (९) अणिट्टी (१०) अपुव्वो ( ११ ) अपमत्तो हो दूणंतरिदो । अट्ठेतालीसपुव्वकोडीओ परिभमिय अपच्छिमाए पुञ्चकोडीए बद्धदेवाउओ सम्मत्तं संजमं च पडिवजय दंसणमोहणीयमुवसामिय उवसमसेठीपाओग्गविसोहीए विसुज्झिय अपमत्तो होदूण अन्धो जादो । लद्धमंतरं । तदो विद्दा- पयलाणं बंधवोच्छेदपढमसमए कालं गदो देवो जादो । अवस्सेहि एक्कारस अंतोमुहुत्तेहि य अपुव्वद्धाए सत्तमभागेण च ऊणाओ अट्ठेतालीसपुचकोडीओ उक्कस्संतरं होदि । एवं चेत्र तिण्हमुत्रसामगाणं । णवरि दस हिं
[ १, ६, ७२.
उक्त गुणस्थानोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ ७२ ॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, ओघमें कहा जा चुका है।
चारों उपशामकोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व है || ७३ ॥ इनमें से पहले मनुष्य सामान्य उपशामकोंका अन्तर कहते हैं-मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता रखनेवाला कोई एक जीव मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ, और गर्भको 'आदि लेकर आठ वर्षसे सम्यक्त्व और संयमको एक साथ प्राप्त हुआ (१) । प्रमत्त और अप्रमत्त संयत गुणस्थान में साता और असाता वेदनीयके बंध परावर्तन - सहस्रोंको करके (२) दर्शनमोहनीयका उपशम करके (३) उपशमश्रेणीके योग्य अप्रमत्तसंयत हुआ (४) । पुनः अपूर्वकरण (५) अनिवृत्तिकरण (६) सूक्ष्मसाम्पराय (७) उपशान्तकषाय (८) सूक्ष्मसाम्पराय ( ९ ) अनिवृत्तिकरण (१०) अपूर्वकरण (११) और अप्रमत्तसंयत हो अन्तरको प्राप्त होकर अड़तालीस पूर्वकोटियों तक परिभ्रमण कर अन्तिम पूर्वकोटि देवायुको बांध कर सम्यक्त्व और संयमको युगपत् प्राप्त होकर दर्शनमोहनीयका उपशमकर उपशमश्रेणीके योग्य विशुद्धिसे विशुद्ध होता हुआ अप्रमत्तसंयत होकर अपूर्वकरणसंयत हुआ । इस प्रकारसे अन्तर उपलब्ध होगया । तत्पश्चात् निद्रा और प्रचलाके बंध-विच्छेदके प्रथम समयमें कालको प्राप्त हो देव हुआ । इस प्रकार आठ वर्ष और ग्यारह अन्तर्मुहूर्तीसे तथा अपूर्वकरणके सप्तम भागसे कम अड़तालीस पूर्वकोटिकाल उत्कृष्ट अन्तर होता है । इसी प्रकारसे शेष तीन उपशामकोंका भी अन्तर १ एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १, ८. २ उत्कर्षेण पूर्व कोटीपृथक्त्वानि । स. सि. १८
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