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________________ क्षेत्र स्पर्शनानुगम-विषय-सूची क्रम नं. विषय पृ.नं. क्रम नं. विषय पृ.नं. काययोगी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र २५८ १२० वैक्रियिकमिटकाययोगी मिथ्या१११ काययोगी सयोगिकेवलीका दृष्टि, सासादगसम्यग्दृष्टि और स्पर्शनक्षेत्र, तथा पृथक सूत्र. असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका द्वारा बतलानेका सयुक्तिक स्पर्शनक्षेत्र २६८-२६९ कारण-निरूपण २५८-२५९/१२१ आहारककाययोगी और आहा११२ औदारिककाययोगी मिथ्या रकमिश्रकाययोगी प्रमत्तसंयदृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र २५९.२६० तोंका स्पर्शनक्षेत्र ११३ औदारिककाययोगी सासादन १२२ कार्मणकाययोगी मिथ्याष्टि सम्यग्दृष्टि जीवोंका वर्तमान | जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र २६९-२७० और अतीतकालिक स्पर्शन १२३ कार्मणकाययोगी सासादन२६०.२६१ सम्यग्दृष्टि और असंयतसम्य११४ औदारिककाययोगी सम्य ग्दृष्टि जीवोंका वर्तमान तथा ग्मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्य अतीतकालिक स्पर्शनक्षेत्र २७०-२७१ ग्दृष्टि और संयतासंयत जीवोंका १२४ कार्मणकाययोगी सयोगिवर्तमान और अतीतकालिक केवलीका स्पर्शनक्षेत्र २७१ स्पर्शनक्षेत्र २६१-२६२ ५ वेदमार्गणा २७१-२७९ ११५ प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे १२५ स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी मिथ्यालेकर सयोगिकेवली गुणस्थान दृष्टि जीवोंके वर्तमान और तकके औदारिककाययोगी अतीतकालिक स्पर्शनक्षेत्रका जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र २६२-२६३ सयुक्तिक निरूपण २७१-२७२ ११६ औदारिकमिश्रकाययोगी मिल |१२६ स्त्री और पुरुषवेदी सासादनथ्यादृष्टि जीवोंका स्पर्शन सम्यग्दृष्टि जीवोंके वर्तमान क्षेत्र २६३-२६४ और अतीतकालिक स्पर्शन११७ औदारिकमिश्रकाययोगी सा क्षेत्रका तदन्तर्गत शंका-समासादनसम्यग्दृष्टि, असंयत धानके साथ निरूपण २७२-२७४ सम्यग्दृष्टि और सयोगिकेवली १२७ स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी सम्यजीवोंके स्पर्शनक्षेत्रका तद ग्मिथ्यादृष्टि तथा असंयतन्तर्गत शंका- समाधान पूर्वक सम्यग्दृष्टि जीवोंका वर्तमान सोपपत्तिक निरूपण २६४-२६५ और अतीतकालिक स्पर्शन११८ वैक्रियिककाययोगी मिथ्या क्षेत्र २७४ दृष्टि जीवोंके वर्तमान और | १२८ स्त्री और पुरुषवेदी संयता. अतीतकालिक स्पर्शनक्षेत्रका संयतोंका वर्तमान और अतीतसोपपत्तिक निरूपण कालिक स्पर्शनक्षेत्र २७४-२७५ ११९ वैक्रियिककाययोगी सासादन- | १२९ प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि अनिवृत्तिकरण उपशामक और और असंयतसम्यग्दृष्टि क्षपक गुणस्थान तक स्त्री और जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र २६७-२६८ पुरुषवेदी जीवोंका तदन्तर्गत __ २६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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