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शंका-समाधान
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उस उस द्वीप समुद्रकी भीतरी परिधिसे उत्तरोत्तर आगेको बढ़ता जावेगा । इस प्रकार होते होते अन्तिम समुद्र लवणसागरमें एक अर्धच्छेद उसकी बाह्य सीमाके समीप और दूसरा उसकी भीतरी सीमा समीप पड़ जावेगा । यही बात निम्न चित्रसे और भी स्पष्ट हो जावेगी ।
मान लो कि स्वयंभूरमण समुद्र जम्बूद्वीपसे आगे तीसरे वलयपर है, और उसीकी बाह्य सीमापर रज्जुका अन्त होता है । रज्जुका प्रथम अर्धच्छेद तो जम्बूद्वीप के मध्य में मेरुपर पड़ेगा ही । अब वहांसे आगेका विस्तार पचास हजार योजनको १ मान लेनपर केवल १+४+८+ १६ =२९ योजन रहा । जं. द्वी.
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स्वयंभूरमण समुद्र
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अतएव रज्जुका दूसरा अर्थच्छेद १४३ योजन पर स्वयंभूरमणसमुद्र में, तीसरा अर्थच्छेद ७४ योजन पर उससे पूर्ववर्ती द्वीपमें, चौथा अर्धच्छेद ३1⁄2 योजन पर लवणसमुद्रकी बाह्य सीमाके समीप, तथा पांचवां अर्धच्छेद १ योजन पर लवणसमुद्र की आभ्यंतर सीमा के समीप पड़ेगा । इस प्रकार हम कितने ही द्वीप समुद्र आगे आगे मान लें तो भी लवणसमुद्र में अन्ततः दो ही अर्थच्छेद पड़ेंगे । यही बात त्रिलोकसार की गाथा नं. ३५२ - ३५८ में कही गई है ।
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पुस्तक ३, पृ. ४४
१४ शंका - पुस्तक ३ के पू. ४४ पर क्षेत्राकारके द्वारा जो यह समझाया गया है कि संपूर्ण जीवराशिके वर्गको दूसरे भाग अधिक जीवराशिले भाजित करनेपर तीसरा भागहीन जीवराशि प्राप्त होती है, सो यह बात वहां दिये गये आकारसे समझ नहीं आती । कृपया समझाइये ? (नेमीचंदजी वकील, सहारनपुर, पत्र २४-११-४१ ) समाधान - मान लीजिये, सर्व जीवराशि १६ है, इसका वर्ग हुआ १६×१६ = २५६. अब यदि हम इस जीवराशिके वर्ग ( २५६ ) में जीवराशि (१६ ) का भाग देते हैं तो २५ = १६ अर्थात् जीवराशि प्रमाण ही लब्धआता है । और यदि उसी जीवराशिके वर्ग में द्विभाग अधिक जीवराशि ( १६ + ८ = २४ ) का भाग देते है तो त्रिभागहीन जीवराशिप्रमाण, अर्थात् १६ – १६ = १० डे आता है; जैसे २ = १०.
इसी बात को धवलाकारने क्षेत्रमिति द्वारा भी समझाया है जिसका कि अनुबादके साथ चित्र भी दिया गया है । इस चित्रमें सड जीवराशि ( मानलो १६ ) है, उसको स ड' (१६) वर्गित करनेपर प्रतराकार क्षेत्र स ड स ड' बन जाता है जिसमें अंकप्रमाण दिखाने के लिये
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