SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 587
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७४ j छक्खंडागमे जीषट्ठाणं [१, ५, ३०६. . एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ३०६ ॥ तं जधा-एको पमत्तसंजदो हायमाणसुक्कलेस्सिगो एगो समओ सुकलेस्साए अस्थि ति संजदासंजदो जादो । विदियसमए संजदासंजदो चेव, किंतु पम्मलेस्सं गदो । एसा लेस्सापरावती (१)। सेसगुणहाणेहिंतो संजमासंजमं पडिवज्जंताणं सुक्कलेस्साए एगसमओ ण लब्भदि । कुदो ? वड्डमाणसुक्कलेस्साए संजमासंजमं पडिवण्णाणं विदियसमए पम्मलेस्साए गमणाभावा । अधवा संजदासजदो वड्डमाणपम्मलेस्सिगो तिस्से अद्धाखएण संजमा संजमद्धाए एगो समओ अस्थि ति सुक्कलेस्सिओ जादो । विदियसमए सुक्कलेस्सिओ चेव, किंतु अप्पमत्तभावेण संजमं पडिवण्णो । एसा गुणपरावती (२)। पमत्तस्स उच्चदे- एक्को अप्पमत्तो हायमाणसुक्कलेस्सिगो सुक्कलेस्सद्धाए एगो समओ अस्थि ति पमत्तो जादो। विदियसमए पमत्तो चेव, किंतु लेस्सा परावत्तिदा । एसा लेस्सापरावती (१) । अधवा एक्को पमत्तो वड्डमाणपम्मलेस्सिगो पम्मलेस्सद्धाए खएण सुक्कलेस्सिगो जादो। विदियसमए ( सुक्कलेस्सिगो) चेव, किंतु अप्पमत्तो जादो। एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल एक समय है ॥३०६॥ जैसे- हायमान शुक्ललेश्यावाला एक प्रमत्तसंयत जीव, शुक्ललेश्याके कालमें एक समय शेष रहने पर संयतासंयत हुआ। द्वितीय समयमें वह संयतासंयत ही है, किन्तु पपलेश्याको प्राप्त हो गया। यह लेश्याका एक समयसम्बन्धी परिवर्तन है (१)। शेष गुणस्थानोंसे संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले जीवोंके शुक्ललेश्याका एक समय नहीं पाया जाता है। क्योंकि, वर्धमान शुक्ललेश्याके साथ संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले जीवोंके द्वितीय समयमें पद्मलेश्यामें गमनका अभाव है। अथवा कोई संयतासंयत वर्धमान पनलेश्यावाला है। उस लेश्याके कालक्षयसे और संयमासंयमके कालमें एक समय अवशेष रहने पर वह शुक्ललेश्यावाला हो गया। द्वितीय समयमें वह शुक्ललेश्यावाला ही है, किन्तु अप्रमत्तभावके साथ संयमको प्राप्त हुआ। यह गुणस्थानपरिवर्तनसम्बन्धी एक समयकी प्ररूपणा है (२)। अब प्रमत्तसंयतके एक समयकी प्ररूपणा करते हैं- हायमान शुक्ललेश्यावाला कोई एक अप्रमत्तसंयत शुक्ललेश्याके कालमें एक समय अवशेष रहने पर प्रमत्तसंयत हो गया । द्वितीय समयमें वह प्रमत्तसंयत ही रहा, किन्तु लेश्या परिवर्तित हो गई । यह लेश्यापरिवर्तनसम्बन्धी एक समयकी प्ररूपणा हुई (१)। अथवा, वर्धमान पनलेश्यावाला कोई एक प्रमत्तसंयत जीव, पालेश्याके कालक्षयसे शुक्ललेश्यावाला हो गया । द्वितीय समयमें वह (शुक्ललेश्यावाला) ही १ एकजीवं प्रति जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy