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१५६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ५, २८४. ... किण्हलेस्साए ताव अंतोमुहुत्तपरूवर्ण कीरदे । तं जधा-णीललेस्साए अच्छिदस्स तिस्से अद्धाखएण किण्हलेस्सा जादा । सव्वलहुमंतोमुहुत्तमच्छिदूण णीललेस्सिओ जादो । । काउलेस्सिओ किण्ण होदि ? ण, किण्हलेस्साए परिणदस्स जीवस्स अणंतरमेव काउलेस्सापरिणमणसत्तीए असंभवा ।।
____णीललेस्साए उच्चदे- हीयमाण-वड्डमाणकिण्हलेस्साए काउलेस्साए वा अच्छिदस्स णीललेस्सा आगदा । सव्वजहण्णमंतोमाच्छिय जहण्णकालाविरोहेण काउलेस्सं किण्हलेस्सं वा गदो, अण्णलेस्सागमणासंभवा । के वि आइरिया हीयमाणलेस्साए चेव जहण्णकालो होदि त्ति भणंति ।
काउलेस्साए वि उच्चदे- हायमाणणीललेस्साए तेउलेस्साए वा अच्छिदस्स काउलेस्सा आगदा। तत्थ सव्वजहण्णमंतोमुहुत्तमच्छिय जदि तेउलेस्सादो आगदो, तो णीललेस्सं णेदव्यो। अह णीललेस्सादो आगदो तो तेउलेस्साए णेदव्वो, अण्णहा संकिलेस-विसोहीओ आउरंतस्स जहण्णकालाणुववत्तीदो । एत्थ जोगस्सेव एगसमओ जहण्ण
पहले कृष्णलेश्याके अन्तर्मुहूर्त कालकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार हैनीललेश्यामें वर्तमान किसी जीवके उस लेश्याके काल क्षय हो जानेसे कृष्णलेश्या हो गई, और वह उसमें सर्वलघु अन्तर्मुहूर्त काल रह करके नीललेश्यावाला हो गया।
शंका-कृष्णलेश्याके पश्चात् कापोतलेश्यावाला क्यों नहीं होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, कृष्णलेझ्यासे परिणत जीवके तदनन्तर ही कापोतलेश्यारूप परिणमन शक्तिका होना असंभव है।
अब नीललेश्याके अन्तर्मुहूर्त कालकी प्ररूपणा करते हैं- हीयमान कृष्णलेश्यामें अथवा वर्धमान कापोतलेश्यामें विद्यमान किसी जीवके नीललेश्या आगई। तब वह जीव उसमें सर्व जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल रह करके जघन्य कालके अविरोधसे यथासंभव कापोतलेश्याको अथवा कृष्णलेश्याको प्राप्त हुआ, क्योंकि, इन दोनों लेश्याओंके सिवाय उसके अन्य किसी लेश्याका आगमन असंभव है। कितने ही आचार्य, हीयमान लेश्याम ही जघन्य काल होता है, ऐसा कहते हैं।
__अब कापोतलेश्याके जघन्य कालको कहते हैं- हायमान नीललेश्यामें अथवा तेजोलेश्यामें विद्यमान जीवके कापोतलेश्या आगई। वह जीव उस लेश्याम सर्वजघन्य अन्तर्मुहूर्त काल रह करके, यदि तेजोलेश्यासे आया है तो नीललेश्यामें ले जाना चाहिए; और यदि नीललेश्यासे आया है तो तेजोलेश्यामें ले जाना चाहिए । अन्यथा संक्लेश और विशुद्धिको आपूरण करनेवाले जीवके जघन्य काल नहीं बन सकता है।
शंका-यहां पर योगपरावर्तनके समान एक समयरूप जघन्य काल क्यों नहीं १ म-प्रतौ ' हायमाण ' इत्यपि पाठः।
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