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________________ १, ५, २३५.] कालाणुगमे इस्थिवेदिकालपरूवणं [४३९ तं जधा- एगो मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी संजदासंजदो पमत्तसंजदो वा इत्थिवेदगो परिणामपच्चएण असंजदसम्मादिट्ठी होदूण सव्वजहण्णमंतोमुहुत्तमच्छिय जहण्ण. कालाविरोहेण गुणंतरं गदो । लद्धो जहण्णकालो।। उक्कस्सेण पणवण्णपलिदोवमाणि देसूणाणि ॥ २३४ ॥ कुदो ? अणप्पिदवेदस्स पणवण्णपलिदोवमाउट्ठिदिदेवीसु उववन्जिय छ पज्जत्तीओ समाणिय अंतोमुहत्तं विस्समिय पुणो अंतोमुहुत्तं विसुद्धो होदण वेदगसम्मत्तं पडिवजिय सम्मत्तेण आउट्ठिदिमणुपालिय कालं कादूग पुरिसवेदं पडिवण्णस्स तीहिं' अंतोमुहुत्तेहि ऊणपणवण्णपलिदोवमुवलंभा। संजदासंजदप्पहुडि जाव अणियट्टि ति ओघं ॥ २३५॥ कुदो ? ओघं पेक्खिदूण उत्तगुणट्ठाणाणं भेदाभावा । णवरि संजदासजदउक्कस्सकालम्हि अस्थि विसेसो । तं जधा- एको अवीससंतकम्मिओ त्थीवेदेसु कुक्कुड जैसे-- एक मिथ्यादृष्टि, या सम्यग्मिथ्यादृष्टि, या संयतासंयत अथवा प्रमत्तसंयत स्त्रीवेदी जीव परिणामोंके निमित्तसे असंयतसम्यग्दृष्टि होकर और सर्वजघन्य अन्तर्मुहूर्त रह करके जघन्य कालके अविरोधसे किसी दूसरे गुणस्थानको चला गया। इस प्रकार जघन्य काल लब्ध हुआ। एक जीवकी अपेक्षा स्त्रीवेदी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल कुछ कम पचवन पल्योपम है ॥ २३४ ॥ क्योंकि, किसी अविवक्षित अन्य वेदवाले जीवके पचवन पल्योपमकी आयुस्थितिवाली देवियों में उत्पन्न हो, छहों पर्याप्तियोंको सम्पन्न कर, अन्तर्मुहूर्त विश्राम करके, पुनः अन्तमुहूर्त में विशुद्ध होकर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त कर सम्यक्त्वके साथ अपनी आयुस्थितिको परिपालन कर, मरणको करके पुरुषवेदको प्राप्त हुए जीवके तीन अन्तर्मुहूतौसे कम पचवन पल्योपमप्रमाण काल पाया जाता है। संयतासंयत गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण गुणस्थान तक स्त्रीवेदी जीवोंका काल आपके समान है ॥ २३५॥ क्योंकि, ओघके कालको देखते हुए सूत्रोक्त गुणस्थानोंके कालोंमें कोई भेद नहीं है। केवल संयतासंयतके उत्कृष्ट कालमें विशेषता है। वह इस प्रकार है-मोहकर्मकी अट्ठाईस १ उत्कर्षेण पंचपंचाशत्पल्योपमानि देशोनानि । स. सि. १. २ क प्रतौ' विहि' इति पाठ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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