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________________ १, ५, १९०.] कालाणुगमे कायजोगिकालपरूवणं [१२१ तं जधा- एको सासणो सगद्धाए एगसमओ अत्थि त्ति ओरालियमिस्सकायजोगी जादो । विदियसमए मिच्छत्तं गदो । लद्धो एगसमओ । उक्कस्सेण छ आवलियाओ समऊणाओ ॥ १८८ ॥ तं जधा- देवो वा णेरइओ वा उवसमसम्मादिट्ठी उवसमसम्मत्तद्धाए छ आवलियाओ अत्थि त्ति सासणं गदो । एगसमयमच्छिय कालं करिय तिरिक्ख-मणुस्सेसु उजुगदीए उववज्जिय ओरालियमिस्सकायजोगी जादो । समऊण-छ-आवलियाओ अच्छिय मिच्छत्तं गदो। ___ असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ १८९ ॥ तं जधा- सत्तट्ट जणा बहुगा वा असंजदसम्मादिद्विणो णेरइया ओरालियमिस्सकायजोगिणो जादा । सव्वलहुं पज्जत्तिं गदा, बहुसागरोवमाणि पुव्वं दुक्खेण सह द्विदत्तादो। उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १९० ॥ ..................... जैसे- एक सासादनसम्यग्दृष्टि जीव अपने कालमें एक समय अवशिष्ट रहने पर औदारिकमिश्रकाययोगी हो गया और द्वितीय समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। इस प्रकार एक समय प्राप्त हो गया। उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल एक समय कम छह आवलीप्रमाण है ॥ १८८॥ जैसे- कोई एक देव अथवा नारकी उपशमसम्यग्दृष्टि जीव, उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवली कालके शेष रहने पर सासादनगुणस्थानको प्राप्त हुआ। वहां पर एक समय रह करके मरण कर तिर्यंच और मनुष्योंमें ऋजगतिसे उत्पन्न होकर औदारिकमिश्र पयोगी हो गया। वहां पर एक समय कम छह आवली तक रह करके मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तमुहूते काल तक होते हैं ॥ १८९॥ जैसे-सात आठ जन. अथवा बहतसे असंयतसम्यग्दृष्टि नारकी जीव औदारिकमिश्रकाययोगी हुए । और बहुतसे सागरोपम काल तक पहले दुःखोंके साथ रहे हुए होनेसे सर्वलघु कालसे पर्याप्तियों को प्राप्त हुए। उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १९०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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