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________________ १, ५, १७८.] कालाणुगमे कायजोगिकालपरूवणं [४१५ जादो, सव्वुकस्समंतोमुत्तमच्छिदण एइंदिएसु उप्पण्णो । तत्थ अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियट्टू कायजोगेण सह परियट्टिदूण आवलियाए असंखेजदिभागमेत्तपोग्गलपरियडेसुप्पण्णेसु तसेसु आगंतूण सव्वुक्कस्समंतोमुहुत्तमच्छिय वचिजोगी जादो । लद्धो कायजोगस्स उक्कस्सकालो। सासणसम्मादिटिप्पहुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति मणजोगिभंगो ॥ १७७ ॥ एदं सुत्तं सुगम, मणजोगे णिरुद्धे पवंचेण परूविदत्तादो । णवरि मरण-वाघादा सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीणं णत्थि । सासणसम्मादिहि-संजदासजद-पमत्तसंजदाणं वाघादेण एगसमओ णत्थि, मरणेण पुण अस्थि । ओरालियकायजोगीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ १७८ ॥ कुदो ? ओरालियकायजोगिमिच्छादिट्ठिसंताणस्स सव्वद्धासु वोच्छेदाभावा । कालक्षय हो जानेसे काययोगी हो गया। वहां पर सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्तकाल तक रह करके एकेन्द्रियों में उत्पन्न हुआ। वहां पर अनन्तकालप्रमाण असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन काययोगके साथ परिवर्तन करके आवलीके असंख्यातवें भागमात्र पुद्गलपरिवर्तनोंके शेष रहने पर प्रसजीवों में आकर और सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल रह करके वचनयोगी हो गया। इस प्रकारसे काययोगका उत्कृष्ट काल प्राप्त हुआ। सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक काययोगियोंका काल मनोयोगियोंके कालके समान है ॥ १७७॥ यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, मनोयोगके निरुद्ध करनेपर पहले प्रपंचसे (विस्तारसे) । प्ररूपण किया जा चुका है। विशेष बात यह है कि काययोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टियोंके मरण और व्याघात नहीं होते हैं। तथा काययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत और प्रमत्तसंयतोंके व्याघातकी अपेक्षा एक समय नहीं होता है, किन्तु मरणकी अपेक्षा एक समय होता है। __ औदारिककाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ १७८ ॥ - क्योंकि, औदारिककाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंकी परम्पराके सभी कालोंमें विच्छेदका अभाव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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