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________________ १०२ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ५, १४२. एदस्सुदाहरणं- एगो अणप्पिदकाइओ अप्पिदकाइएसु उप्पज्जिय सव्वुक्कस्सियं अप्पिदकाइयविदिमसंखेज्जलोगमेत्तं परिभमिय अणप्पिदकायं गदो।। बादरपुढविकाइया बादरआउकाइया बादरतेउकाइया बादरवाउकाइया बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरा केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ १४२ ॥ कुदो ? सव्वकालमणुच्छिण्णसंताणत्तादो । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ १४३॥ एदस्सुदाहरणं- एगो अणप्पिदकाइओ अप्पिदकाइयअपजत्तएसु उववज्जिय सव्वजहण्णमाउद्विदि गमिय अणप्पिदकाइएसु उववण्णो। लद्धो जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणकालो। उक्कस्सेण कम्मट्टिदी ॥ १४४ ॥ कम्मट्ठिदि त्ति वुत्ते किं सव्वेसि कम्माणं द्विदीओ घेप्पंति, आहो एक्कस्स चेय दिदी घेप्पदि त्ति ? सव्वकम्माणं विदीओ ण घेप्पंति, किंतु एक्कस्सेव कम्मद्विदी घेप्पदि । इसका उदाहरण-अविवक्षित कायवाला कोई एक जीव विवक्षित पृथिवीकायिक आदि जीवोंमें उत्पन्न होकर विवक्षित कायकी असंख्यात लोकप्रमाण सर्वोत्कृष्ट स्थिति तक परिभ्रमण करके पुनः अविवक्षित कायको प्राप्त हो गया। बादरपृथिवीकायिक, बादरजलकायिक, बादरतेजस्कायिक, बादरवायुकायिक और बादरवनस्पतिकायिकप्रत्येकशरीर जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ १४२ ॥ क्योंकि, इन सूत्रोक्त जीवोंकी सर्वकाल अविच्छिन्न संतान पाई जाती है। एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है ।। १४३॥ इसका उदाहरण-अविवक्षित कायवाला कोई एक जीव विवक्षित कायके लब्ध्यपर्याप्तक जीवों में उत्पन्न होकर वहां की सर्व जघन्य आयुस्थितिको बिताकर पुनः अविवक्षितकायिकोंमें उत्पन्न हो गया, तब क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण जघन्य काल उपलब्ध हुआ। उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल कर्मस्थितिप्रमाण है ॥ १४४ ॥ शंका-'कर्मस्थिति' इस प्रकार कहने पर क्या सर्व कर्मोंकी स्थितियां ग्रहण की जा रही हैं, अथवा, एक ही कर्मकी स्थिति ग्रहण की जा रही है ? समाधान-सर्व कर्मों की स्थितियां नहीं ग्रहण की जा रही हैं, किन्तु एक मोहकर्मकी ही स्थिति यहां पर 'कर्मस्थिति' शब्दसे ग्रहण की जा रही है, क्योंकि, इस प्रकारका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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