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________________ १, ५, १२४.] कालाणुगमे एइंदियकालपरूवणं __[३९५ सव्वद्धासु विरहाभावा । सो वि कधं णबदे ? अण्णहाणुववत्तिहेउलक्खणोवलक्खियजिणवयणादो। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ १२३ ॥ केम्महतं ? तेसिं जहण्णाउट्ठिदिमेत्तं । एत्थ खुद्दाभवग्गहणं किण्ण लब्भदे ? ण, अपज्जत्ते मोत्तूण अण्णत्थ तस्स संभवाभावा । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १२४ ॥ एगाउद्विदी संखेज्जावलियमेत्ता त्ति कटु संखेज्जवारं वा तत्थेव पुणो पुणो उप्पज्जमाणस्स दिवस-पक्ख-मास-उडु-अयण-संवच्छरादिकालो किण्ण लब्भदे ? ण, तेत्तिय. वारं तत्थुप्पत्तीए असंभवा । सो वि कधं णव्वदे ? अंतोमुहुत्तवयणण्णहाणुववत्तीदो । कथं क्योंकि, सभी कालोंमें सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंके विरहका अभाव है। शंका- यह भी कैसे जाना ? समाधान- अन्यथानुपपत्तिस्वरूप हेतुके लक्षणसे उपलक्षित जिन-वचनसे जाना जाता है कि सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीव सर्वदा रहते हैं। एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १२३॥ शंका-यह अन्तर्मुहूर्त काल कितना बड़ा लेना चाहिए ? समाधान-उनकी, अर्थात् सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंकी जघन्य आयुके कालप्रमाण लेना चाहिए। शंका-इस सूत्रमें 'अन्तर्मुहूर्त' के स्थानपर 'क्षुद्रभवग्रहण' इस पदका उपादान क्यों नहीं किया गया? समाधान- नहीं, क्योंकि, लब्ध्यपर्याप्तक जीवों को छोड़कर अन्यत्र उसका, अर्थात् क्षुद्रभवका होना संभव नहीं है। सूक्ष्म एकेन्द्रियपर्याप्तक जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥१२४ ॥ शंका-जब कि एक आयुकर्मकी स्थिति संख्यात आवलीप्रमाण है, तब संख्यातपार वहां पर ही पुनः पुनः उत्पन्न होनेवाले जीवके दिवस, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, अथवा संवत्सर आदि प्रमाण स्थितिकाल क्यों नहीं पाया जाता है ? . समाधान नहीं, क्योंकि, उतने वार उस पर्याय में उत्पत्ति होना असंभव है, जितने वारमें कि मास, वर्ष आदि प्रमाण स्थितिकाल पाया जा सके। शका-यह भी कैसे जाना? . समाधान-अन्यथा, सूत्रमें 'अन्तर्मुहूर्त' ऐसा वचन नहीं हो सकता था, इस भन्यथानुपपत्तिले जाना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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