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________________ १, ५, २१.] कालाणुगमे पमत्तापमत्तसंजदकालपरूवणं [ ३५१ तं जधा- पमत्तस्स ताव एगसमओ वुच्चदे । एक्को अप्पमत्तो अप्पमत्तद्धाए खीणाए एगसमयं जीविदमत्थि त्ति पमत्तो जादो । पमत्तगुणेण एगसमयं दिट्ठो विदियसमए मदो देवो जादो । णट्ठो पमादविसिट्ठसंजमो। एवं पमत्तस्स एगसमयपरूवणा गदा। अप्पमत्तस्स वुच्चदे- एक्को पमत्तो पमत्तद्धाए खीणाए एगसमयं जीवियमत्थि त्ति अप्पमत्तो जादो । अप्पमत्तगुणेण एगसमयं दिट्ठो विदियसमए मदो देवो जादो। णट्ठमप्पमत्तगुणहाणं । अधवा उवसमसेढीदो ओदरमाणो अपुव्यकरणो एगसमयं जीविदमत्थि त्ति अप्पमत्तो जादो, विदियसमए मदो देवेसुववण्णो । एवं दोहि पयारेहि अप्पमत्तस्स एगसमयपरूवणा कदा। उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २१ ॥ पमत्तस्स ताव वुच्चदे- एक्को अप्पमत्तो पमत्तपज्जाएण परिणमिय सव्वुक्कस्समंतोमुहुत्तमच्छिय मिच्छत्तं गदो । एवं पमत्तस्स उक्कस्सकालपरूवणा गदा । अप्पमत्तस्स वुच्चदे- एक्को पमत्तो अप्पमत्तो होदूण सव्वुक्कस्समंतोमुहुत्तमच्छिय पमत्तो जादो । एसा अप्पमत्तस्स बुक्कस्सकालपरूवणा । ............ ___ वह इस प्रकार है- पहले प्रमत्तसंयतका एक समय कहते हैं। एक अप्रमत्तसंयत जीव, अप्रमत्तकालके क्षीण हो जाने पर तथा एक समयमात्र जीवित शेष रहनेपर हो गया। प्रमत्तगुणस्थानके साथ एक समय दिखा, और दूसरे समयमें मरकर देव उत्पन्न हो गया। तब प्रमादविशिष्ट संयम नष्ट हो गया। इस प्रकारसे प्रमत्तसंयतके एक समयकी प्ररूपणा हुई । अब अप्रमत्तसंयतके एक समयकी प्ररूपणा करते हैं- एक प्रमत्तसंयत जीव प्रमत्तकालके क्षीण हो जाने पर, तथा एक समयमात्र जीवनके शेष रह जाने पर अप्रमत्तसंयत हो गया। तब अप्रमत्तगुणस्थानके साथ एक समय दिखा, और दूसरे समयमें मरकर देव हो गया। पुनः अप्रमत्तगुणस्थान नष्ट हो गया। अथवा, उपशमश्रेणीसे उतरता हुआ अपूर्वकरणसंयत एक समयमात्र जीवनके शेष रहनेपर अप्रमत्त हुआ, और द्वितीय समयमें मरकर देवों में उत्पन्न हो गया। इस तरह दोनों प्रकारोंसे अप्रमत्तसंयतके एक समयकी प्ररूपणा की गई। प्रमत्त और अप्रमत्तसंयतका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ २१ ॥ पहले प्रमत्तसंयतका उत्कृष्ट काल कहते हैं- एक अप्रमत्तसंयत,प्रमत्तसंयतपर्यायसे परिणत होकर और सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कालप्रमाण रह करके मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। इस प्रकार प्रमत्तसंयतके उत्कृष्ट कालकी प्ररूपणा हुई। अब अप्रमत्तसंयतका उत्कृष्ट काल कहते हैं- एक प्रमत्तसंयतजीव, अप्रमत्तसंयत होकर, वहांपर सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल तक रह करके प्रमत्तसंयत हो गया। यह अप्रमत्तसंयतके उत्कृष्ट कालकी प्ररूपणा है। १ उत्कर्षेणान्तर्मुहूर्तः। स. सि. १, ८. .............. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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