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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ४, ९४.
सम्मादिस्सि उववादो णत्थि । सम्मामिच्छादिट्ठिस्स मारणंतिय उववादो णत्थि । तेणेत्थ वि ओघत्तमेदेर्सि जुञ्जदे ।
वेडव्वियमिस्सकायजोगीसु मिच्छादिट्टि सासणसम्मादिट्टि असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ९४ ॥
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एदस्य सुत्तस्स वट्टमाणपरूवणा खेत्तभंगो । सत्थाणसत्थाण- वेदण-कसाय उववादपरिणदवेउच्चियमिस्सकायजोगिमिच्छादिट्ठीहि अदीदकाले तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । विहारव दिसत्थाणवे उव्विय-मारणंतिय पदाणि णत्थि । सासणसम्मादिट्ठिस्स वि एवं चैव वत्तव्यं, वाणवेंतरजोदिसि यदेवाणमसंखेज्जावासेसु तिरियलोगस्स संखेज्जदिभाग मोट्ठहिय ट्ठिदे सासणाणमुपपत्तिदंसणादो | असंजदसम्माइट्ठीहि सत्थाणसत्थाण वेदण-कसाय-उववाद परिणदेहि चउन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो, वाणवेंतर- जोदि सिय
वैक्रियिककाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके उपपादपद नहीं होता है । वैक्रियिककाययोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद, ये दो पद नहीं होते हैं। इसलिए यहां पर भी ओघपना बन जाता है ।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ९४ ॥
इस सूत्र की वर्तमानकालिक स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रके समान है । स्वस्थानस्वस्थान, बेदना, कषाय और उपपादपदपरिणत वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीतकालमें सामान्य लोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके विहारवत्स्वस्थान, वैक्रियिक और मारणान्तिकसमुद्धात, ये पद नहीं होते हैं। सासादनसम्यदृष्टि गुणस्थानकी भी स्पर्शनप्ररूपणा इसी प्रकार से कहना चाहिए । तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागको व्याप्त करके स्थित वानव्यन्तर और ज्योतिष्क देवोंके असंख्यात आवासोंमें सासावनसम्यग्दृष्टि जीवों की उत्पत्ति देखी जाती है । स्वस्थानस्वस्थान, वेदना, कषाय और उपपादपदपरिणत वैक्रियिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है, क्योंकि,
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