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छक्खंडागमे जीवट्टागं
[ १, ४, ५६.
अणुद्दिस जाव सव्वसिद्धिविमाणवासिय देवेसु असंजदसम्मादीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ५६ ॥ एदेसु दिअसंजदसम्मादिट्ठीहि सत्थाणसत्थाण-विहार व दिसत्थाण- वेदण-कसायवेउच्चिय-मारणंतिय-उववादपरिणदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखे तादो असंखेञ्जगुणो, णवगेवज्जादिउवरिमदेवाणं तिरिक्खेसु चयणोववादाभावादो । वरि पंचपदपरिणदेहि सव्यसिद्धिदेवेहि माणुसलोगस्स संखेज्जदिभागो पोसिदो । एवं गदिमग्गणा समत्ता ।
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इंदियावादे एइंदिय-वादर-सु हुम-पज्जत्तापज्जत्त एहि केवडियं खेत्तं फोसिदं सव्वलोगों ॥ ५७ ॥
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एइंदिएहि सत्थाणसत्थाण- वेदण-कसाय-मारणंतिय उववादपरिणदेहि तीद- वट्टमाणकालेसु सव्वलोगो फोसिदो । वेउब्वियपरिणदेहि वट्टमाणकाले चदुण्हं लोगाणमसंखेज दि
नव अनुदिश विमानोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक विमानवासी देवों में असंयतसम्यदृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ५६ ॥
इन नव अनुदिश और पांच अनुत्तर विमानों में रहने वाले स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्त्रस्थान, वेदना, कपाय, वैक्रियिक, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपरिणत असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और मानुषक्षेत्र से असंख्यात गुणा क्षेत्र स्पर्श किया है, क्योंकि, नवमैत्रेयकादि उपरिम कल्पवासी देवोंका च्यवन होकर तिर्यचों में उपपाद होने का अभाव है । विशेष बात यह है कि स्वस्थानादि पांच पदों परिणत सर्वार्थसिद्धिके देवाने मनुष्यलोकका संख्यातवां भाग स्पर्श किया है । इस प्रकार गतिमार्गणा समाप्त हुई ।
इन्द्रियमाणा के अनुवाद से एकेन्द्रिय, एकेन्द्रियपर्याप्त, एकेन्द्रियअपर्याप्त; बादर एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रियपर्याप्त, बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म केन्द्रियपर्याप्त और सूक्ष्म एकेन्द्रियअपर्याप्त जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? सर्वलोक स्पर्श किया है ।। ५७ ।।
स्वस्थानस्वस्थान, वेदना, कषाय, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद, इन पदोंसे परिणत एकेन्द्रिय जीवोंने अतीत और वर्तमानकाल में सर्वलोक स्पर्श किया है । वैकियिकपदपरिणत एकेन्द्रिय जीवने वर्तमानकाल में सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां
१ इन्द्रियानुवादेन एकेन्द्रियैः सर्वलोकः स्पृष्टः । स. सि. १, ८.
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