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________________ १, ४, ३८. ] फोसणागमे मणुस्फोसणपरूवर्ण [ २२१ सत्था-वेद कसाय - उब्वियपदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेनस्स संखेज्जदिभाग पोसिदो । अदीदाणागदवद्यमाणकालेसु मणुस असंजदसम्मादिडीणं मणुससमामिच्छादिभिंगो । वरि मारणंतिय समुग्धादगदेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदि भागो पोसिदो । तं कथं । मणुससम्मादिट्ठिदेवेसु मारणंतियं करेंता संखेज्जपंथ-संखेज्जविमाणेसु चेव मारणंतियं करेंति, वाणवेंतर- जोदिसिएस सिमुप्पत्तीए अभावाद । तत्थ एकेकिस्से वहाए जदिवि असंखेज्जजोयणलक्खबाहल्लं होदि, तो वि तिरियलोगस्स असंखेज्जदिभागमेत्तं चैव खेत्तं फोसिदं होज । तेणेदमप्पधाणं । मणुमा पुत्रं तिरिक्खे बद्धायुगा पच्छा सम्मत्तं घेत्तूण तिरिक्खेसु उप्पजंति, एदं खेत्तं पधाणं । कघमेदमाणिञ्जदे ? सयंपहपव्वदादो उवरिमखेत्तविक्खभं ठविय -- व्यासं षोडशगुणितं षोडशसहितं त्रिरूपरूपहृतं । व्यासत्रिगुणितसहितं सूक्ष्मादपि तद्भवेत्सूक्ष्मम् ॥ ९॥ किया है | विद्वारवत्स्वस्थान, वेदना, काय और वैक्रियिकसमुद्वात, इन पदोंकी अपेक्षा मनुष्याने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और मनुष्यलोकको संख्यात भाग स्पर्श किया है। अतीत, अनागत और वर्तमान, इन तीनों कालों में मनुष्य असंयतसम्यग्दृष्टियोंकी स्पर्शनप्ररूपणा मनुष्य सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके समान है । विशेष बात यह है कि मारणान्तिकसमुद्वातगत अलंयत मनुष्योंने सामान्यलोक आदि तीन लोकों का असंख्यातवां भ ग और तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग स्पर्श किया है । शंका- मारणान्तिकसमुद्धतिगत असंयत सम्यग्दृष्टि मनुष्योंने तिर्यग्लोकका संस्थातवां भाग कैसे स्पर्श क्रिया १ समाधान - देवों में मारणान्तिकसमुद्धात करने वाले सम्यग्दृष्टि मनुष्य संख्यात मार्ग वाले संख्यात विमानोंमें ही मारणान्तिकसमुद्धात करते है, क्योंकि, उनकी वानव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों में उत्पत्ति नहीं होती है। उनमें एक एक मारणान्तिकलमुखातके मार्गका यद्यपि असंख्यात लाख योजन बाहल्य होता है, तो भी वह क्षेत्र ( सब मिलकर ) तिर्य ग्लोक असंख्यातवें भागमात्र ही स्पर्श किया गया होगा। इसलिए यह क्षेत्र यहां पर अप्रधान है। पहले तिर्योंमें जिन्होंने आयु बांध ली है ऐसे मनुष्य पीछे सम्यक्त्वको ग्रहण करके तिर्यों में उत्पन्न होते हैं, यह क्षेत्र यहां पर प्रधान है । शंका- बद्धायुष्क मनुष्योंका यह उपपादक्षेत्र कैसे निकाला जाता है ? समाधान - स्वयंप्रभ पर्वतले उपरिम क्षेत्रके विष्कम्भको स्थापित करके -- व्यासको सोलह से गुणा करे, पुनः सोलह जोड़े, पुनः तीन, एक और एक अर्थात् एकसौ तेरह (११३ ) का भाग देवे । पुनः व्यासका तिगुना जोड़ देवे, तो सूक्ष्म से भी सूक्ष्म परिधिका प्रमाण आ जाता है ॥ ९ ॥ १ भा.क पत्यो भागो संखेजमागो वा' इति प । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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