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१, ४, ३३.] फोसणाणुगमे तिरिक्खफोसणपरूवणं
[२१५ अपज्जत्ता अस्थि । कुदो, पुव्ववेरियदेवसंबंधेण एगबंधणबद्धछज्जीवणिकाओगाढकम्मभूमिपडिभागुप्पण्णओरालियदेहमच्छादीणं सबदीव-समुद्देसु संभवोवलंभादो । महामच्छोगाहणम्हि एगबंधणबद्धछज्जीवणिकायाणमत्थित्तं कधं णव्वदे ? वग्गणम्हि उत्त. अप्पाबहुगादो । तं जहा- 'सव्वत्थोवा महामच्छसरीरे पदरस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता तसकाइयजीवा । तेउकाइया जीवा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? असंखेज्जा लोगा। पुढविकाइया जीवा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तो विसेसो ? असंखेज्जलोगमेत्तो । तेसिं पडिभागो वि असंखेज्जलागमेत्तो । एवं आउकाइया विसेसाहिया । वाउकाइया विसेसाहिया । वणप्फइकाइया अणंतगुणा त्ति' । ण च सव्वे ते पज्जत्ता चेव, तसअपज्जत्ताणं पि' तेउ. काइयाणं च संभवादो। ण च मुदसरीरे चेव पंचिंदियअपज्जत्ताणं संभवो ति वोत्तुं जुत्तं, तस्स विधाययसुत्ताभावा । महामच्छादिदेहे तेसिमत्थित्तस्स सूचगं पुण इदमप्पाबहुगसुत्तं होदि । तसपज्जत्तरासीदो तसअपज्जत्तरासी असंखेज्जगुणो । तेण जत्थ तसजीवाणं
पूर्वभवके वैरी देवोंके सम्बन्धले एक बंधन में बद्ध षट्कायिक जीवोंके समूहसे व्याप्त और कर्मभूमिके प्रतिभागमें उत्पन्न हुए औदारिकदेहवाले महामच्छादिकोंकी सर्वद्वीप और समुद्रों में संभावना पाई जाती है।
शंका-महामच्छकी अवगाहनामें एक बन्धनसे बद्ध षट्कायिक जीवोंका अस्तित्व कैसे जाना जाता है ?
समाधान-वर्गणाखंडमें कहे गये अल्पबहुत्वानुयोगद्वारसे जाना जाता है । वह इस प्रकार है- 'महामत्स्यके शरीरमें सबसे कम जगप्रतरके असंख्यातवें भागमात्र त्रसकायिक जीव होते हैं । उन लकायिक जीवोंसे तेजस्कायिक जीव असंख्यातगुणे होते हैं। गुणकार क्या है ? असंख्यात लोक गुणकार है। तेजस्कायिक जीवोंसे पृथिवीकायिक जीव विशेष अधिक होते हैं। कितने प्रमाण विशेषले अधिक होते हैं ? असंख्यात लोकमात्र विशेषसे अधिक होते हैं। उनका प्रतिभाग भी असंख्यात लोकमात्र होता है। इसी प्रकारसे पृथिवीकारिक जीवोंसे अप्कायिक जीव विशेष अधिक होते हैं । अप्कयिक जीवोसे वायुकायिक जीव विशेष अधिक होते हैं और वायुकाायक जीवोंसे वनस्पतिकायिक जीव अनन्तगुणे होते हैं।'
___ महामच्छके शरीरमें ऊपर कहे गये ये सब जीव केवल पर्याप्त ही नहीं होते हैं, किन्तु उसके शरीरमें त्रसकायिक लब्ध्यपर्याप्त जीव और तेजस्कायिक जीवोंका भी होना संभव है। तथा मृत शरीर में ही पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त जीव संभव हैं ऐसा भी कहना युक्त नहीं है, क्योंकि, इस बातके विधायक सूत्रका अभाव है। किन्तु महामच्छादिके देहमें उनके अस्तित्वका सूचक यही उक्त अल्पबहुत्वसूत्र है। त्रसपर्याप्तराशिसे त्रसअपर्याप्तराशि असंख्यातगुणी होती है, इसलिए जहां पर त्रसजीवोंकी
१ प्रतिषु वी हि ' इति पाठः।
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