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________________ १९८] छक्खंडागमे जीवाणं [ १, ५, २५. गुणे कदे चउसट्ठी उप्पज्जदि । पुणो पुचिल्लदुगुणिदरासिम्हि एदमवणिदे चउत्थसमुदस्स गुणगारसलागा होति । एदाहि लवणसमुदखेत्तफले गुगिदे चउत्थसमुदखेत्तफलं होदि । एवमणेण बीजपदेण सव्वसमुदाणं खेत्तफलमाणेदव्यं । तत्थ सवपच्छिमस्स सयंभुरमणसमुदस्स खेत्तफलागयणं भण्णदे- दीव-सागररूवाणि अद्धिदे समुद्दसंखा होदि । ताओ समुदसलागाओ रूवूणाओं करिय विरलिय रूवं पडि सोलस दादूण अण्णोण्णभत्थे कदे जोयणलक्खवग्गेण छत्तीससदरूवाहियतिसहस्सपदुप्पण्णेण जगपदरम्हि भागे हिदे एगभागो आगच्छदि । पुणो एवं दुगुणिय पुध दृविय पुघिल्लविरलणं विरलिय रूवं पडि चत्तारि दादूण अण्णोण्णभत्थे कदे छप्पण्णजोयणलक्खाए सेटिं खंडेदूग एगवंडमागच्छदि । तं पुघिल्लदुगुणिदरासिम्हि अवणिदे सयंभूरमणसमुस्सद्द गुणगारसलागा हाँति । एदाहि लवणसमुदखेत्तफले गुणिदे चौंसठ संख्या उत्पन्न होती है। पुनः पहले की दुगुणित राशि से इस राशिको कमा देनेपर चौथे समुद्रकी गुणकारशलाकाएं हो जाती हैं। उदाहरण-चतुर्थसमुद्रकी मशलाका ४; ४ - १ = ३, १६४ १६४ १६ = ४०९६, ४०९६ ४२ = ८६९२६ sxsxs = ६४, ८१९२-- ६४ = ८१२८ चतुर्थ समुद्रकी गुणकारशलाका. इन गुणकारशलाकाओंसे लवणसमुद्र के क्षेत्रफलको गुणा करनेपर चौथे समुद्रका क्षेत्रफल हो जाता है। इस प्रकार इस उक्त बीजपदसे सभी समुद्रोंका क्षेत्रफल निकालना चाहिए। उनमें सबसे अन्तिम जो स्वयम्भूरमण समुद्र है, उसके क्षेत्रफलको निकालने का विधान कहते हैं-सर्वद्वीप और समुदाँकी जितनी संख्या है, उसे आधा करने पर सर्व समुद्रों की संख्या हो जाती है । उन सपुद्रशलाकाओं को एक कम करके विरलनकर और प्रत्येक रूपके प्रति सोलह देकर आपसमें गुणा करने पर तीन हजार एक सौ छत्तीससे. गुणित एक लाख योजनके वर्गले जगप्रतरमें भाग देने पर एक भाग आता है । पुनः इसे दूना करके पृथक् स्थापित कर पहलेके विरलनको विरलितकर प्रत्येक रूपके प्रति चार देकर आपसमें गुणा करने पर छप्पन लाख योजनके प्रमाणसे जगश्रेणीको खंडित करनेपर एक खंड आ जाता है। उसे पहले दूनी की गई राशिमेंसे घटा देनेपर स्वयंभूरमण समुद्रकी गुणकारशलाकाएं हो जाती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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