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________________ १९६ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, ४, २५. सलागाहि दीव- सायरजंबूदीवसलागाऔ ओवट्टिय गुणगारा उप्पादेदव्त्रा १।६।२८। १२०|४९६।२०१६।८१२८ । एवं ठविदगुणगारसलागाहि लवणसमुद्दजंबूदीवस लागाओ गुणिय जंबूदीवजोयणपदराणि गुणिदे इच्छिददीव - सायराणं खेत्तफलं होदि । संपहि समुद्दाणं श्वेव खेत्तफलमाणेदुमिच्छामो त्ति अप्पणो इच्छिद - इच्छिदसमुद्दाणं लवणसमुद्दगुणगारसलागाणयणविधाणं बुच्चदे - लवणोदयसमुद्दादो कालोदयसमुद्दो खेत्तफलेण अट्ठावीस गुणो । तहि उप्पाइज्जमाणे दो रूवे ठविय पढमस्स वड्डी णत्थि त्ति एगरूवमवणिय सेसेगरूवं विरलिय सोलस दादूण अण्णोष्ण मासे कदे सोलस होंति । ते दुगुणिय चत्तारि अवणिदे कालोदयसमुद्दस्स अट्ठावीस गुणगारसलागा उप्पज्जेति । तेहिं लवणोदयसमुद्दस्स जम्बूद्वीपप्रमाण शलाकाएं अपवर्तितकर गुणकार उत्पन्न करना चाहिए जो इस प्रकार आते हैं- १, ६, २८, १२०, ४९६, २०१६, ८१७८ । उदाहरण - (१) लवणसमुद्रकी जम्बूद्वीपशलाकाएं २४ । ल. स. की द्वीप सा. सम्बन्धी शलाकाएं २४ | ३४ = १ लवणसमुद्रकी गुणकारशलाका । (२) धातकी खंडद्वीपकी प्रमाणशलाका १४४ । ४= ६ गुणकारशलाकाएं । (३) कालोदकसमुद्रकी प्रमाणशलाका ६७२ । ६२ = २८ गुणकारशलाका । इत्यादि । इस प्रकार स्थापन की गई गुणकारशलाकाओंसे लवणसमुद्रकी जम्बूद्वीपप्रमाण शलाकाओंको गुणित करनेपर पुनः उसे जम्बूद्वीपके प्रतरात्मक योजनोंसे गुणा करनेपर इच्छित द्वीप और सागरोंका क्षेत्रफल आता है । उदाहरण -- (१) घातकी द्वीप - गुणकारशलाका ६। ६ × २४ × ७९०५६९४१५० घातकीद्वीपका क्षेत्रफल । (२) कालोदधि - गुणकारशलाका २८ २८ × २४ x ७९०५६९४१५० कालोदधिका क्षेत्रफल | (३) पुष्करद्वीप - गुणकारशलाका १२० १ १२० × २४ x ७९०५६९४१५० पुष्कर द्वीपका क्षेत्रफल । इत्यादि । अब केवल समुद्रों का ही क्षेत्रफल निकालना चाहते हैं, इसलिए अपने अपने इष्ट समुद्रोंकी लवणसमुद्रप्रमाण गुणकारशलाकाओंके निकालने का विधान कहते हैं लवणोदकसमुद्र से कालोदकसमुद्र क्षेत्रफलकी अपेक्षा अट्ठाईस गुणा है । उसे उत्पन्न करने के लिए दो रूपको स्थापनकर प्रथमसमुद्रकी वृद्धि नहीं है, इसलिए एक रूप कमकर शेष एक रूपको विरलन कर उसके ऊपर सोलह देकर परस्पर में गुणित करनेपर सोलह ही होते हैं । उन्हें दूना कर उनमेंसे चार कम कर देने पर कालोदकसमुद्रकी अट्ठाईस गुणकारशलाकाएं उत्पन्न होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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